२०५।१ (ग)] आवासिक और उपोसथ [ १६५ २४-(१०) "यदि० कटूक्ति-पूर्वक उपोसथ करें० प्रातिमोक्ष पाठ कर चुकने किन्तु परिपद्के कुछ लोगोंके रहते तथा कुछ लोगोंके उठ जानेपर० भिक्षु जो संख्यामें उनसे अधिक हों आ जायँ तो भिक्षुओ! उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोक्ष पाठ करना चाहिये । (पहिले) पाठ करने- वालोंको थु ल्ल च्च य का दोप है । 156 (११) "यदि ० कटूक्ति-पूर्वक उपोसथ करें ० प्रातिमोक्ष पाठ कर चुकने किन्तु परिपके कुछ लोगोंके रहते तथा कुछ लोगोंके उट जानेपर • भिक्षु जो संख्यामें उनके समान हों आ जायँ तो भिक्षुओ ! पाठ हो चुका सो ठीक; उनके पास शुद्धि बतलानी चाहिये ; और पाठ करनेवालोंको थु ल्ल च्च य का दोष है। 157 (१२) "यदि ० कटू वित-पूर्वक उपोसथ करें • प्रातिमोक्ष-पाठ कर चुकने किन्तु परिपक्के कुछ लोगोंके रहते तथा कुछ लोगोंके उठ जानेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनसे कम हों, आ जाये तो भिक्षुओ ! पाठ हो चुका सो ठीक, उनके पास शुद्धि बतलानी चाहिये; और पाट करनेवालोंको थु ल्ल च्च य का दोष है । 158 २५--(१३) “यदि ० कटूक्ति-पूर्वक उपोसथ करें ० प्रातिमोक्षका पाट कर चुकने तथा सारी परिपद्के उठ जानेपर ० भिक्ष जो संख्यामें उनसे अधिक हों, आ जायँ, तो भिक्षुओ ! उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोक्ष-पाठ करना चाहिये और पाट करनेवालोंको थुल्ल च्च य का दोप है । 159 (१४) "यदि ० कटुक्ति-पूर्वक उपोसथ करें ० प्रातिमोक्षका पाठ कर चुकने तथा सारी परिषद्के उट जानेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनके समान हों आ जायँ, तो भिक्षुओ ! जो पाठ हो चुका सो ठीक. उनके पास शुद्धि वतलानी चाहिये; और पाठ करनेवालोंको थुल्ल च्च य का दोप है । 160 (१५) “यदि ० कटूक्ति-पूर्वक उपोसथ करें • प्रातिमोक्षका पाठ कर चुकने तथा सारी परिषद्के उठ जानेपर ० भिक्षु जो संख्या में उनसे कम हों आ जायँ, तो भिक्षुओ ! जो पाठ हो चुका लो ठीक ; उनके पास शुद्धि वतलानी चाहिये ; और पाठ करनेवालोंको थु ल्ल च्च य का दोष है ।" 161 पन्द्रह कटूक्ति-पूर्वक समाप्त पचीसी समाप्त ख. अन्य यावासिकोंकी अनुपस्थितिको जाने विना किया गया उपोसथ २६-५०-"यदि भिक्षुओ ! किसी आवासमें बहुतसे--चार या अधिक-आश्रमवासी भिक्षु उपोसथके दिन एकत्रित हों, वह नहीं जानें कि कुछ अन्य आश्रमवासी भिक्षु सीमाके भीतर आ रहे हैं। ०1 162 -186 ५१-०५-यदि ० उपोमथके दिन एकत्रित हों, वह नहीं जा न ते कि कुछ अन्य आश्रमवासी भिक्ष नीमाके भीतर आ गये हैं। ०१ !" 187-212 ग. अन्य अावासियोंकी अनुपस्थितिको देखे विना किया गया उपोसथ ७६-१००-"यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों, वह नहीं दे ख ते कि कुछ अन्य आश्रमवासी भिक्ष नीमाके भीतर आ रहे हैं। ० 1213-237 ५ पिछली पचीसीकी तरह इसे भी उ पो स थ करते, उ पो स थ कर चुकने, परिपके बैठे रहने परिषद्मे कुछवे उठजाने तथा कुछके दैठे रहने और सारी परिषद्के उठ जाने, इन पांचोंको न जानने, जानने, संदेहयुक्त, संकोचयुक्त और कटूक्ति-पूर्दकके साथ पढ़नेपर पच्चीस भेद होंगे।
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