२०५।१ (c) ] नियम-विरुद्ध उपोसथ [ १६१ दुक्क ट का दोप है। IIS (१५) “यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों और वे जानें ० और उनके प्रातिमोक्ष पाट कर चुकनेपर तथा सारी परिपद्के उठ जानेपर दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनसे कम हों, आ जायँ, तो भिक्षुओ! पाठ हो गया सो ठीक; उनके पास शुद्धि बतलानी चाहिये । पाठ करनेवाले भिक्षुओं- को दुक्क ट का दोप है।" 116 पंद्रह वर्ग-अवर्गके ज्ञान समाप्त (c) अन्य आश्रमवासियों की अनुपस्थितिमें सन्देहके साथ किया गया दोव-युक्त-उपोसथ ११- (१) "यदि भिक्षुओ! किसी आवासमें बहुतसे --चार या अधिक-आश्रमवासी भिक्षु उपो स थ के दिन एकत्रित हों और वे जानें कि कुछ दूसरे आश्रमवासी भिक्षु नहीं आये। वह हमें उपोसय करना युक्त हे या नहीं--इसमें सन्देह युवत होते उपोसथ करें, प्रातिमोक्षका पाठ करें, और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ करते समय दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनसे अधिक हों, आ जायें, तो भिक्षुओ! उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोक्ष-पाठ करना चाहिये, और (पहले) पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोष है। 117 (२) "यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों, और वे जाने ०, सन्देह युक्त होते उपोसथ करें. प्रातिमोक्ष-पाठ करते समय ० भिक्षु जो संख्यामें उनके समान हों आ जायें, तो भिक्षुओ ! जो पाठ हो गया वह ठीक; वाकीको (वह भी) सुने, पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोप है। 118 (३) “यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों, वे जानें ०, सन्देह-युक्त होते उपोसथ करें ० प्राति- मोक्ष-पाठ करते समय ० भिक्षु जो संख्यामें उनसे कम हों आ जायें, तो भिक्षुओ ! जो पाठ हो गया वह ठीक; वाकीको (वह भी) सुने । पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोष है। II9 १२-(४) “यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों, और वे जाने०, सन्देह-युक्त होते उपोसथ करें • प्रातिमोक्ष-पाठ कर चुकनेपर भिक्षु जो संख्यामें उनसे अधिक हों, आजायें, तो भिक्षुओ ! उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोक्ष-पाठ करना चाहिये, और पाठ करनेवालोंको दुक्कटका दोप है। 120 (५) “यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों, और वे जानें ०, सन्देह-युक्त होते उपोसथ करें । प्रातिमोक्ष-पाठ कर चुकनेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनके समान हों आजायें, तो भिक्षुओ ! जो पाठ हो गया वह ठीक, उनके पास शुद्धि वतलानी चाहिये । पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोप है। 121 (६) “यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों और वे जानें ० सन्देह-युक्त होते उपोसथ करें। प्रातिमोक्षका पाठ कर चुकने पर ० भिक्षु जो संख्यामें उनमे कम हों आजायें तो भिक्षुओ! जो पाठ हो गया वह ठीक, उनके पास गुद्धि बतलानी चाहिये । पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोप है। 122 १३-(७) “यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों, और वे जानें० सन्देह-युक्त होते उपोसथ करें ० प्रातिमोक्षका पाठ कर चुकने किन्तु परिपद्के अभी न उठनेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनसे अधिक हों आजायें, तो भिक्षुओ! उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोक्ष-पाठ करना चाहिये। पाट करनेवालोंको दृवकटका दोप है। 123 (८) “यदि ० उपोमथके दिन एकत्रित हों, और वे जानें ० सन्देह-युक्त होते उपोसथ करें। प्रातिमोधका पाठ कर चुकने किन्तु परिपके अभी न उठनेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनके समान हों आजायें, तो भिक्षुओ ! जो पाठ हो गया वह ठीक, उनके पास गुद्धि बतलानी चाहिये । पाट करनेवालों को दुवक ट का दोप है। 124 (५) "यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों, और वे जानें ० सन्देह-युक्त होते उपोसथ करें. .
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