१५८ ] ३-महावग्ग [ २०५१ (a) वासी भिक्षु एकत्रित होते हैं, वह नहीं जानते कि कुछ आश्रमवासी भिक्षु नहीं आये हैं । वे धर्म समझ, विनय समझ, (संघका एक) भाग होते भी (अपनेको) समग्र समझ उपोसथ करें, प्रातिमोक्षका पाठ करें और उनके प्रातिमोक्ष-पाट करते समय दूसरे आश्रमवासी भिक्षु-जो संख्यामें समान हों-आजायें तो जो पाठ हो चुका वह ठीक, वाकीको (वह भी) सुनें। पाठ करनेवालोंको दोप नहीं। 88 (३) “यदि भिक्षुओ ! किसी आवासमें उपोसथके दिन बहुतसे–चार या अधिक-आश्रम- वासी भिक्षु एकत्रित हों और वे न जाने कि कुछ आश्रमवासी भिक्षु नहीं आये । वे धर्म समझ, विनय समझ, (संघका एक) भाग होते भी (अपनेको) समग्र समझ उपोसथ करें, प्रातिमोक्षका पाठ करें और उनके प्रातिमोक्ष-पाट करते समय दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनसे कम हैं० तो जो पाठ हो चुका वह ठीक, वाकीको वह भी सुनें। पाठ करनेवालोंको दोप नहीं। 89 २-(४) "यदि भिक्षुओ! किसी आवासमें उपोसथके दिन बहुतसे-बार या अधिक- आश्रमवासी भिक्षु एकत्रित हों और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ कर चुकनेपर दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनसे अधिक हैं आजायँ तो भिक्षुओ! उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोक्षपाठ करना चाहिये। पाठ करनेवालोंको दोष नहीं। 90 (५) "यदि भिक्षुओ ! किसी आवासमें उपोसथके दिन बहुतसे–चार या अधिक- आश्रमवासी भिक्षु एकत्रित हों० और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ कर चुकनेपर दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनके समान हैं, आजायँ तो भिक्षुओ ! जो पाट हो चुका सो ठीक । उनके पास (आये भिक्षुओंको) शु द्धि बतलानी चाहिये । पाठ करनेवालोंको दोप नहीं। 91 (६) “यदि भिक्षुओ ! किसी आवासमें उपोसथके दिन बहुतसे–चार या अधिक-भिक्षु एकत्रित हों० और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ कर चुकनेपर दूसरे आश्रमवासी भिक्षु-जो संख्यामें उनसे कम हैं--आजायँ तो भिक्षुओ! पाठ हो चुका सो ठीक । उनके पास (आये भिक्षुओंको) शुद्धि बतलानी चाहिये। पाठ करनेवालोंको दोष नहीं। 92 ३--(७) "यदि भिक्षुओ! किसी आवासमें उपोसथके दिन बहुतसे-चार या अधिक- आश्रमवासी भिक्षु एकत्रित हों और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ कर चुकनेपर किन्तु परिपद्के अभी न उठने पर दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनसे अधिक हैं आजायँ, तो भिक्षुओ! उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोक्ष-पाठ करना चाहिये, (पहले) पाठ करनेवालोंको दोप नहीं। 93 (८) “यदि भिक्षुओ! किसी आवासमें उपोसथके दिन बहुतसे-चार या अधिक-आश्रम- वासी भिक्षु एकत्रित हों और प्रातिमोक्ष-पाठकर चुकने किन्तु परिपद्के अभी न उठनेपर दूसरे आश्रम- वासी भिक्षु जो संख्यामें उनके समान हैं, आजायँ तो भिक्षुओ होगया पाठ ठीक । उनके पास शुदि बतलानी चाहिये । पाठ करनेवालोंको दोप नहीं। 94 (९) "यदि भिक्षुओ ! किसी आवासमें उपोसथके दिन बहुतसे--चार या अधिक-आश्रम- वासी भिक्षु एकत्रित हों और प्रातिमोक्ष-पाठ कर चुकने किन्तु परिपद्के अभी न उठनेपर भी दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनसे कम हैं, आजायँ, तो भिक्षुओ! होगया पाठ ठीक। उनके पास शुद्धि बतलानी चाहिये। पाठ करनेवालोंको दोप नहीं। 95 ४--(१०) “यदि भिक्षुओ! किसी आवासमें उपोसथके दिन बहुतसे–चार या अधिक- आश्रमवासी भिक्षु एकत्रित हों और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ कर चुकनेपर किन्तु परिषद्के कुछ लोगोंके रहते तथा कुछ लोगोंके उठ जानेपर दूसरे आश्रमवासी जो संख्यामें उनसे अधिक हों आजायँ तो भिक्षुओ ! उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोक्ष-पाठ करना चाहिये। (पहले) पाठ करनेवालोंको दोष नहीं । 96 (११) “यदि भिक्षुओ! किसी आवासमें उपोसथके दिन बहुतसे–चार या अधिक आश्रमवासी
पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२०९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।