२९४१४ ] असाधारण उपोसय [ १५३ "और भिक्षुओ! छंद इस प्रकार भेजना चाहिये--०१ ।छंद ले जानेवाला छंद के दे देनेके बाद संघमें पहुँचकर जान बूझकर नहीं बतलाता, तो भी छंद ले जाया गया होता है, और छंद ले जाने- वालेको दुक्क ट का दोप होता है । भिक्षुओ ! अनमति देता हूँ उपोसथके दिन गुद्धि देते वक्त छंदके भी देनेकी, यदि संघको कुछ करणीय हो।" ३-उस समय एक भिक्षुको उपोसथके दिन उसके खान्दानवालोंने पकळ लिया। भगवान्से यह वात कही।- "भिक्षुओ ! यदि उपोसथके दिन किसी भिक्षुको उसके खान्दानवाले पकळ लें तो (दूसरे) भिक्षुओं- को खान्दानवालोंने ऐसा कहना चाहिये-'अच्छा हो आयुप्मानो! तुम मुहूर्त भर इस भिक्षुको छोळ दो जितनेमें कि यह भिक्षु उपोसथ करले।' यदि ऐसा हो सके तो अच्छा, यदि न हो सके तो भिक्षुओंको खान्दानवालोंसे ऐसा कहना चाहिये-आयुप्मानो ! मुहूर्त भरके लिये जरा एक ओर हो जाओ, जितनेमें कि यह भिक्षु अपनी गुद्धि दे दे।' इस प्रकार यदि हो सके तो अच्छा, यदि न हो सके तो भिक्षु खान्दान वालोंसे ऐसा कहे-'आयुप्मानो! तुम लोग मुहूर्त भरके लिये इस भिक्षुको सीमाके बाहर ले जाओ जितनेमें कि संघ उपोसथ करले।' इस प्रकार यदि हो सके तो अच्छा, यदि न हो सके तो भी संघके एक भागको उपोसथ नहीं करना चाहिये, यदि करे तो दुक्कटका दोप हो।" 68 "भिक्षुओ ! यदि उपोसथके दिन किसी भिक्षुको राजा पकळे, ० । 69 ५-"भिक्षुओ ! यदि उपोसथके दिन किसी भिक्षुको चोर पकळे, ० । 70 ० बदमाश पकळे, ० 171
- -"०भिक्षुके शत्रु पकळे, 0 1 72
(४) पागलके लिये संवकी स्वीकृति ८-तव भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया--"भिक्षुओ ! जमा हो । संघको करणीय (काम) है।" ऐसा कहनेपर एक भिक्षुने भगवान्से यह कहा- "भन्ते ! एक गर्ग नामवाला भिक्षु उन्मत्त है । वह नहीं आया।" "भिक्षुओ! यह दो प्रकारके उन्मत्त होते हैं-(१) भिक्षु उन्मत्त है और उपोसयको याद भी रखता है नहीं भी रखता है; (२) भिक्षु उन्मत्त है और संघ कर्मको याद भी रखता है, नहीं भी रखता है; है लेकिन (उपोसथ) नहीं याद रखता, उपोसथमें आता भी है नहीं भी आता, संघ-कर्ममें आता भी है नहीं भी आता; है किन्तु नहीं आता। "भिक्षुओ! उनमें जो वह उन्मत्त-पागल, उपोसथको याद भी रखता है, नहीं भी याद रखता, संघ-कर्मको याद भी रखता है नहीं भी याद रखता; उपोसथमें आता भी है, नहीं भी आता; संघ-कर्ममें आता भी है, नहीं भी आता; भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ ऐसे उन्मत्तके लिये उन्मत्त होनेके ठहराव करनेकी। 73 "और भिक्षुओ! इस प्रकार ठहराव करना चाहिये-चतुर समर्थ भिक्षु संघको सूचित 64 करे- क. ज्ञ प्ति-"भन्ते ! संघ मेरी सुने, गर्ग भिक्षु उन्मत्त है, वह उपोसथको याद भी रखता है, नहीं भी याद रखता; संघ-कर्मको याद भी रखता है, नहीं भी याद रखता; उपोसथमें आता भी है, नहीं भी आता; संघ-कर्ममें आता भी है, नहीं भी आता। यदि संघ उचित समझे तो वह गर्ग भिक्षुके उन्मत्त होनेका ठहराव करे। गर्ग भिक्षु चाहे उपोसथको याद रखे या न रखे; संघ-कर्मको याद रखे शुद्धि भेजनेकी तरह ही सभी बातें यहाँ भी दुहरानी चाहिएं।