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उस १४६ ] ३-महावग्ग [ २३४ (३) निदानका पाठ करके और चार पा रा जि कों का पाठ करके और तेरह सं घा दि से सों का पाठ करके बाकीको स्मृतिसे सुनाना चाहिये; यह तीसरा प्रातिमोक्षका पाठ है; (४) निदानका पाठ करके, चार पाराजिकोंका पाठ करके, तेरह संघादिसेसोंका पाठ करके, दो अनि य तों का पाठ करके वाकीको सुने अनुसार सुनाना चाहिये, यह चौथा प्रातिमोक्षका पाठ है। (५) और विस्तारके साय पाँचवाँ । भिक्षुओ! यह पाँच प्रातिमोक्षके पाठ हैं।" 25 समय भगवान्ने प्रातिमोक्षके पाठको संक्षेपसे कहनेकी अनुमति दी थी, इस- लिये (भिक्षु) सर्वदा संक्षेपसे प्रातिमोक्षका पाठ करते थे । भगवान्से यह बात कही- "भिक्षुओ! संक्षेपसे प्रातिमोक्षका पाठ नहीं करना चाहिये। जो पाठ करे उसे दुक्क ट का दोष हो ।" 26 (२) आपत्कालमें संक्षिप्त श्रावृत्ति १-उस समय को स ल देशके एक आवासमें उपोसथके दिन शबरों (के उपद्रव) का भय था (इसलिये) भिक्षु विस्तारके साथ प्रातिमोक्षका पाठ नहीं कर सके। भगवान्से यह बात कही- "भिक्षुओ अनुमति देता हूँ विघ्न होनेपर संक्षेपसे प्रातिमोक्षके पाठ करनेकी ।" 27 २-उस समय षड्वर्गीय भिक्षु वाधा न होनेपर भी संक्षेपसे प्रातिमोक्षका पाठ करते थे। भगवान् से. यह बात कही- "भिक्षुओ! वाधा न होनेपर संक्षेपसे प्रातिमोक्षका पाठ नहीं करना चाहिये। जो पाठ करे उसे दुक्कटका दोष हो। भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ वाधा होनेपर संक्षेपसे प्रातिनोक्षके पाठ करनेकी। वह वाधाएँ यह हैं-(१) राज-बाधा, (२) चोर-बाधा, (३) अग्नि-बाधा, (४) उदक-बाधा, (५) मनुष्य-बाधा, (६) अमनुष्य-बाधा, (७) हिंसक-जंतु-बाधा, (८) सरीसृप-बाधा, (९) जीवनकी बाधा, (१०) ब्रह्मचर्यकी बाधा,-भिक्षुओ ! ऐसे विघ्नोंके होनेपर संक्षेपसे प्रातिमोक्षके पाठकी अनुमति देता हूँ; और बाधा न होनेपर विस्तारसे ।" 28 (३) याचना करनेपर उपदेश देना उस समय षड्वर्गीय भिक्षु संघके मध्यमें विना याचना किये ही धर्मोपदेश करते थे। भगवान्से यह बात कही- "भिक्षुओ! याचना किये विना संघके बीचमें धर्मोपदेश नहीं करना चाहिये। जो करे उसे दुक्कटका दोष हो। भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ स्थविर भिक्षुको स्वयं उपदेश करनेकी या दूसरेको (इसके लिये) प्रार्थना करनेकी ।" 29 (४) सम्मति होनेपर विनय पूछना १-उस समय प ड व र्गी य भिक्षु विना सम्मतिके संघके वीचमें विनय पूछते थे। भगवान्से यह वात कही।- "भिक्षुओ! विना सम्मतिके संघके वीचमें विनयको नहीं पूछना चाहिये। जो पूछे उसको दुक्क ट का दोप हो। भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ सम्मति पाये (भिक्षु) को संघके बीच विनय पूछनेकी । 30 "और भिक्षुओ! इस प्रकार सम्मति लेनी चाहिये--स्वयं अपने लिये सम्मति लेनी चाहिये या दूसरेको दूसरेके लिये सम्मति लेनी चाहिये। कैसे स्वयं अपने लिये सम्मति लेनी चाहिये?- चतुर समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे–भन्ते ! संघ मेरी सुने । यदि संघ उचित समझे तो मैं इस नाम - !