१२० ] ३-महावग्ग [ १९३९ "आनन्द ! क्या वह बच्चे कौवा उळाने लायक हैं ?" "हाँ हैं, भगवान् !' तब भगवान्ने इसी संबंधमें, इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ! कौवा उळाने में समर्थ पन्द्रह वर्षसे कम उम्रके बच्चेको श्रामणेर बनानेकी अनुमति देता हूँ।” 76 (८) श्रामणेर शिष्योंको संख्या ३-उस समय आयुष्मान् उ प नं द शाक्यपुत्रके पास कं ट क और म ह क दो श्रामणेर थे। वह एक दूसरेको दुर्वचन कहते थे। भिक्षु (यह देख) हैरान होते, धिक्कारते और दुखी होते थे- 'कैसे श्रामणेर इस प्रकारका अत्याचार करेंगे !' उन्होंने भगवान्से यह बात कही। (भगवान्ने यह कहा)- "भिक्षुओ! एक (भिक्षु)के दो श्रामणेर नहीं रखना चाहिये। जो रखे उसे दुक्क ट का दोष हो।"77 (९) निश्रयको अवधि उस समय भगवान्ने रा ज गृह में ही वर्षा, हेमन्त और ग्रीष्मको बिताया। लोग हैरान होते, धिक्कारते और दुखी होते थे--'शा क्य पुत्री य श्रमणोंके लिये दिशाएँ अन्धकारमय हैं, शून्य हैं। इन्हें दिशाएँ जान नहीं पळतीं।' भिक्षुओंने उन मनुष्योंके हैरान होने, धिक्कारने और दुखी होनेको सुना। तव उन भिक्षुओंने भगवान्से यह बात कही। तब भगवान्ने आयुष्मान् आनंदको संबोधित किया-"जा आनन्द ! जलछक्का (=अवापुरण) ले एक ओरसे भिक्षुओंको कह–'आबुसो ! भगवान् दक्षिणा- गिरि में चारिका करनेके लिये जाना चाहते हैं। जिस आयुप्मान्की इच्छा हो आये।' "अच्छा भन्ते !" (कह) भगवान्को उत्तर दे आयुष्मान् आनन्दने जल छक्का ले एक ओरसे भिक्षुओंको कहा--'आवुसो! भगवान् दक्षिणागिरिमें चारिका करनेके लिये जाना चाहते हैं। जिस आयुष्मान्की इच्छा हो आये।' भिक्षुओंने यह कहा-'आवुस आनंद ! भगवान्ने आज्ञा दी है, दस वर्ष तक नि ध य लेकर बसनेकी, दस वर्ष (के भिक्षु) को निश्रय देनेकी। उसके लिये हमें जाना होगा और निश्रय ग्रहण करना होगा। थोळे दिनका निवास होगा और फिर लौटकर आना होगा, और फिर दो- बारा निश्रय ग्रहण करना होगा । इसलिये यदि हमारे आचार्य और उपाध्याय चलेंगे तो हम भी चलेंगे। न चलेंगे तो हम भी नहीं चलेंगे। (अन्यथा) आवुस आनन्द ! हमारे चित्तका ओछापन समझा जायगा।' तब भगवान् छोटेसे भिक्षु-संघके साथ द क्षि णा गि रि में विचरनेके लिये चले गये। तब भगवान् दक्षिणा-गिरिमें इच्छानुसार विहारकर राजगृहमें लौट आये। तब भगवान्ने आयुष्मान् आनंदसे पूछा- "क्या था आनंद ! जो तथागत छोटेसे भिक्षु-संघके साथ दक्षिणागिरिमें विचरनेके लिये गये?" तव आयुष्मान् आनंदने भगवान्को वह सब वात वतलाई। भगवान्ने इसी संबंधमें इसी प्रक- रणमें धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ चतुर और समर्थ भिक्षुको पाँच वर्ष तक निश्रय लेकर बसने की; और अ-चतुरको जीवन भर तक (निश्रय लेकर वसने की) 178
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