अनु. ८६ ] महावग्ग [ ११११० भगवान् पूर्वाह्ण समय वस्त्र पहिन (भिक्षा-)पात्र और चीवर ले, आयुप्मान् यशको गामी भिक्षु बना, जहाँ श्रेष्ठी गृहपतिका घर था, वहाँ गये । वहाँ ,बिछे आसनपर बैठे। तब मायुप्मान् यशकी माता और पुरानी पत्नी भगवान्के पास आई । आकर भगवान्को अभिवादनकर एक ओर बैठ गई। उनसे भगवान्ने आनुपूर्वी कथा० कही। जब भगवान्ने उन्हें भव्यचित्त०, देखा; तब जो बुद्धों- की उठाने वाली देशना है-दुःख, समुदाय, निरोध और मार्ग-उसे प्रकाशित किया । जैसे कालिमा- रहित शुद्ध-वस्त्र अच्छी तरह रंग पकळता है, वैसेही उन (दोनों) को, उसी आसनपर--"जो कुछ समु- दय-धर्म है, वह निरोध-धर्म है"--यह विरज-निर्मल धर्मचक्षु उत्पन्न हुआ । धर्मको साक्षात्कार कर०, सन्देह-रहित, कथोपकथन-रहित, भगवान्के धर्ममें विशारद और, स्वतन्त्र हो, उन्होंने भगवान्से कहा- "आश्चर्य ! भन्ते ! ! आश्चर्य भन्ते !! o आजसे हमें भगवान् अञ्जलिबद्ध शरणागत उपासिकायें जानें। लोकमें वही तीन वचनों वाली प्रथम उपासिकायें हुई। आयुष्मान् यशके माता पिता और पुरानी पत्नीने, भगवान् और आयुप्मान् यशको उत्तम खाद्य भोजनसे संतृप्त किया=संप्रवारित किया। जव भोजनकर, भगवान्ने पात्रसे हाथ खींच लिया, तब वह भगवान् की एक ओर बैठ गये। तब भगवान् आयुष्मान् यशकी माता, पिता और पुरानी पत्नीको धार्मिक-कथा द्वारा संदर्शन-समाज्ञापन समुत्तेजन-संप्रहर्पण कर आसनसे उठकर चल दिये। (१०) यशके गृहस्थ मित्रोंको प्रव्रज्या आयुष्मान यशके चार गृही मित्र, वाराणसीके श्रेष्ठी-अनुश्रेष्ठियोंके कुलके लळकों-वि मल, सु वा हु, पूर्ण जित् और ग बां पति ने सुना, कि यश कुल-पुत्र शिर-दाढी मुळा, कापायवस्त्र पहिन, घरसे वेघर हो प्रबजित हो गया। सुनकर उनके (चित्तमें) हुआ-"वह 'धर्मविनय छोटा न होगा, वह संन्यास (=प्रव्रज्या) छोटा न होगा, जिसमें यश कुलपुत्र शिर-दाढ़ी मुळा, कापाय-वस्त्र पहिन, घरसे बेघर हो, प्रवजित हो गया।" वह वहाँसे आयुष्मान् यशके पास आये। आकर आयुष्मान् यशको अभिवादनकर एक ओर खळे हो गये। तब आयुष्मान् यश उन चारों गृही मित्रों सहित जहाँ भगवान् थे, वहाँ गये । जाकर भग- वान्को अभिवादनकर एक ओर बैठ गये। एक ओर बैठे हुए आयुष्मान् यशने भगवान्से कहा- "भन्ते ! यह मेरे चार गृही मित्र वा रा ण सी के श्रेष्ठी-अनुश्रेष्ठियोंके कुलके लळके-विमल, सु वा हु, पूर्ण जित् और ग वा म्प ति हैं । इन्हें भगवान् उपदेश करें अनुशासन करें।" उनसे भगवान्ने ० आनुपूर्वी कथा कही । वह भगवान्के धर्ममें विशारद-स्वतन्त्र हो, भगवान्से वोले-“भन्ते ! भगवान् हमें प्रव्रज्या दें, उपसम्पदा दें।" भगवान्ने कहा--"भिक्षुओ! आओ धर्म सु-व्याख्यात है। अच्छी तरह दुःखके क्षयके लिये ब्रह्मचर्यका पालन करो।" यही उन आयुष्मानोंकी उपसम्पदा हुई। तब भगवान्ने उन भिक्षुओंको धार्मिक कथाओं द्वारा उपदेश दिया-अनुशासना की।.. (जिससे) अलिप्त हो उनके चित्त आस्रवोंसे मुक्त हो गये । उस समय लोकमें ग्यारह अर्हत् थे । आयुष्मान् यशके ग्रामवासी (=जानपद-दीहाती) पुराने खान्दानोंके पुत्र, पचास गृही- मित्राने सुना, कि यश कुलपुत्र . . साधु हो गया। सुनकर उनके चित्तमें हुआ-"वह धर्मविनय छोटा न होगा ..। जिसमें यश कुल-पुत्र .. प्रवृजित हो गया।" वह आयुष्मान् यशके पास आये । .. आयुप्मान् यश उन पचास गृहीमित्रों सहित .. भगवान्के पास • गये।... भगवान्ने...निष्कामताका माहात्म्य वर्णन किया...। वह...विशारद हो भगवान्से बोले-"हमें उपसम्पदा मिले"......उन १ धार्मिक सम्प्रदाय। • देखो पृष्ठ ८४
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