! १७११७ ] पंचवर्गीयोंकी प्रव्रज्या [ ८३ "भिक्षुओ ! रूप (=भौतिक पदार्थ) अन्-आत्मा है। यदि रूप (पुरुष) का आत्मा होता तो यह रूप पीळादायक न बनता; और रूपमें-'मेरा रूप ऐसा होता' मेरा रूप ऐसा न होता, यह पाया जाता। चूंकि भिक्षुओ ! रूप अ ना त्मा है इसलिये रूप पीळादायक होता है; और रूपमें-मेरा रूप ऐसा होता, मेरा रूप ऐसा न होता-यह नहीं पाया जाता। "भिक्षुओ! वे द ना अनात्मा है ० । ० संज्ञा ० । ० सं स्का र ० । “भिक्षुओ ! विज्ञान अनात्मा है। यदि भिक्षुओ! वि ज्ञा न (=अभौतिक पदार्थ) आत्मा होता तो वि ज्ञा न पीळादायक न बनता; और विज्ञानमें--मेरा विज्ञान ऐसा होता, मेरा विज्ञान ऐसा न होता यह नहीं पाया जाता। "तो क्या मानते हो भिक्षुओ! रूप नित्य है या अनित्य" ? "अनित्य, भन्ते !" "जो अनित्य है वह दुःख है या सुख ?" "दुःख, भन्ते ! "जो अनित्य दुःख, और विकारको प्रप्त होनेवाला है; क्या उसके लिये यह समझना उत्रित है-यह (=अनित्य पदार्थ) मेरा है, यह मैं हूँ, यह मेरा आत्मा है ?" 'नहीं, भन्ते !" "तो क्या मानते हो भिक्षुओ ! वे द ना नित्य है या अनित्य ? ० । ० संज्ञा ० १ ० सं स्का र ०।० ,” "तो भिक्षुओ! जो कुछ भी भूत, भविष्य, वर्तमान संबंधी, भीतरी या बाहरी, स्थूल या मूक्ष्म, अच्छा या बुरा, दूर या नजदीकका रू प है, सभी रूप न मेरा है, न मैं हूँ, न वह मेरा आत्मा है-ऐसा समझना चाहिये । इस प्रकार ठीक तौरसे समझकर देखना चाहिये । ० वेदना ० । ० संजा ० । ० संग्वार ०। ०विज्ञान ० "भिक्षुओ ! ऐसा देखते हुए, विद्वान्, आर्य-शिष्य रूपसे उदास होता है, वेदनामे उदास होता है, संजाये उदास होता है, संस्वारने उदास होता है, विज्ञानसे उदास होता है। उदास होनेपर (उनमे) विरागको प्राप्त होता है । विरागके कारण मुक्त होता है । मुक्त होनेपर 'मुक्त हूँ' ऐसा ज्ञान होता है। और वह जानता है आवागमन नप्ट हो गया, ब्रह्मचर्यवास पूरा हो गया, करना था सो कर लिया, अब यहाँ कुछ करनेको (बाकी) नहीं है' ।" भगवान्ने यह कहा। संतुष्ट हो पं च वर्गीय भिक्षुओंने भगवान्के भाषणका अभिनंदन किया। इस उपदेशवे कहते समय पंचवर्गीय भिक्षुओंका चिन आत्रवों (=मलों) ने विन्टग हो मुक्त विना न० गया । उन समय तक. लोकमें अर्हत् थे। प्रथम भाणदार ॥१॥ 'घराचर जगत्का उपादान कारण, रूप आदि पाँच स्कन्धों (=समूहों) में देता है। मारे भौतिक पदार्थ रूप त्वन्धगे है । साधारणतः कम यह है जिसमें भारीपन और स्थान प्रेग्नेकी योग्यता हो। गिन भारीपन है. और न जो जगहलो घेरता है वह विनान स्कन्ध है ! रूपले बंधने दिजानकी तीन या है-का. (:- अनुभव करना), हा (-डानकारी प्राप्त करना), और मर (दिन्नमें सरकारी और अपना असर रह जाना) है।
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