0 ? ०। 1............ =ज्ञान उत्पन्न १९१६ ] धर्म चक्र प्रवर्तन [ ८१ आंख-देनेवाला, ज्ञान-करानेवाला शांतिके लिये, अभि ज्ञा के लिये, परिपूर्ण-ज्ञानके लिये और निर्वाणके लिये है । वह कौनसा मध्यम-मार्ग (मध्यम-प्रतिपद्) तथागतने खोज निकाला है; (जोकि) वह यही 'आर्य-अष्टांगिक मार्ग है; जैसे कि-ठीक-दृष्टि, ठीक-संकल्प, ठीक-वचन, ठोक-कर्म, ठीक-जीविका, ठीक-प्रयत्न, ठीक-स्मृति, ठीक-समाधि। यह है भिक्षुओ ! मध्यम-मार्ग (जिसको) यह भिक्षुओ ! दुःख आर्य (=उत्तम) स त्य (सच्चाई) है। जन्म भी दुःख है, जरा भी दुःग्य है, व्याधि भी दुःख है, मरण भी दुःख है, अप्रियोंका संयोग दुःख है, प्रियोंका वियोग भी दुःख है, इच्छा करनेपर किसी (चीज़ ) का नहीं मिलना भी दुःख है। संक्षेपमें सारे भौतिक अभौतिक पदार्थ (=पाँच' उपादानस्कन्ध) ही दुःख हैं। भिक्षुओ! दुःख-समुदय (=दुःख-कारण) आर्य सत्य है । यह जो तृष्णा है-फिर जन्मनेकी, खुश होनेकी, राग-सहित जहाँ तहाँ प्रसन्न होनेकी-। जैसे कि-काम- तृष्णा, भव (=जन्म) तृष्णा, विभव-तृष्णा । भिक्षुओ ! यह है दुःख-निरोध आर्य-सत्य; जोकि उसी तृष्णाका सर्वथा विरक्त हो, निरोध = त्याग= प्रतिनिस्सर्ग = मुक्ति = निलीन होना। भिक्षुओ ! यह है दुःख-निरोधकी ओर जानेवाला मार्ग (दुःख-निरोध-गामिनी-प्रतिपद्) आर्य सत्य । यही आर्य अप्टांगिक मार्ग है "यह दुःख आर्य-सत्य है' भिक्षुओ! यह मुझे न-सुने धर्मोमें, आँख उत्पन्न हुई हुआ प्रज्ञा उत्पन्न हुई = विद्या उत्पन्न हुई = आलोक उत्पन्न हुआ। 'यह दुःख आर्य-सत्य परिज्ञेय है' भिक्षुओ! यह मुझे पहिले न-सुने धर्मोमें० । (सो यह दुःख-सत्य) परि-ज्ञात है।' भिक्षुओ! यह मुझे पहिले न सुने गये धर्मोमें। "यह दुःख-समुदय आर्य-सत्य है' भिक्षुओ, यह मुझे पहिले न सुने गये धर्मोमें आंख उत्पन्न हुई, = प्रजा उत्पन्न हुई = विद्या उत्पन्न हुई = आलोक उत्पन्न हुआ। 'यह दुःख-समुदय आर्य- सत्य त्याज्य है", भिक्षुओ! यह मुझे०।' प्रहीण (छूट गया)' यह भिक्षुओ मुझे० । "यह दुःख-निरोध आर्य-सत्य है' भिक्षुओ! यह मुझे पहिले न सुने गये धर्मोमें आँख उत्पन्न हुई “नो यह दुःख-निरोध आर्य-सत्य साक्षात् (=प्रत्यक्ष) करना चाहिये" भिक्षुओ! यह मुझे० । वा दुःव-निरोध-सत्य साक्षात् किया' भिक्षुओ! यह मुझे० । "यह दुःख-निरोध-गामिनी-प्रतिपद् आर्य-सत्य है' भिक्षुओ! यह मुझे पहिले न सुने गये प्रमोमें, आंग्य उत्पन्न हुई ० । यह दुःख-निरोध-गामिनी-प्रतिपद् आर्यसत्य भावना करनी चाहिये, भिक्षुओ! वह मुझे० । “यह दुःख-निरोध-गामिनी-प्रतिपद् भावना की" भिक्षुओ! यह मुझे० । “भिक्षुओ ! जबतक कि इन चार आर्यसत्योंका (उपरोक्त) प्रकारने तेहरा (हो) वान्ह आकारका-यथार्थ शुद्ध ज्ञान-दर्शन न हुआ; तबतक भिक्षुओ! मैंने यह दावा नहीं किया- यो गहिन गार-सहित ब्रह्मा सहित (सभी) लोकमें, देव-मनुप्य-सहित, साधु-ब्राह्मण-महित (मभी) योगे. अनुपम परम ज्ञानको मैंने जान लिया' भिक्षुओ! (जब) इन चार आर्य-मत्योंका मोक्न) प्रकारले तेहा (हो) दारह आकारका यथार्थ गुड नान-दर्शन हो गया, तब मैने रा! यह दावा किया-'देवों सहित० मैने जान लिया। मैंने जानको देखा । मेरी मुक्ति अचल । अहिग जन्म है। फिर भद आदागमन नहीं।" मानने पर कहा । संतुष्ट हो पंचवर्गीय निक्षोंने भगवान्नं भापत्रा अभिनन्दन किया । F कहे जाने समय, आयुष्मान् कौडिन्य को-"जो कुछ उत्पन्न होनेवाला है, वह ज्ञान हुआ ! ! हिदीप निहारने "सहिपट्टानगुन" दो देखो ।
पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१२४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।