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[ ४ ] इसके देखनेसे मालूम होगा, कि विभंगके संबंधमें तो दोनों निकाय एक राय रखते हैं, किन्तु दूसरे भागके लिये स्थविरवादी खन्ध क नाम देते हैं, और मूलमर्वास्तिवादी वि न य व स्तु । लेकिन उनके वर्णित विषयोंको देखनेसे मालूम होगा कि खन्ध क और बि न य-ब स्तु दोनोंके विस्तार और संक्षेप का ख्याल छोळ देनेपर, वह एक ही हैं। खन्धककी भाँति विनय-वस्तुम भी हर एक विनय-नियमके बननेका इतिहास दिया हुआ है। पालीमें भी पे त व त्य, वि मा न व त्यु ग्रंथोंके बन्थु नामकरण उनमें कथाओंके संग्रह होनेके कारण हुए हैं। धम्मपदकी अट्टकथामें भी कथा लिये व त्यु (=बस्तु) गब्दका प्रयोग बगबर हुआ है। इस प्रकार मूलसर्वास्तिवादियोंका बि न य व स्तु (=विनयकी कथापं.), महावस्तु, क्षुद्रकवस्तु नाम बिल्कुल ही युक्तियुक्त हैं। इसके विरुद्ध स्थविरवादियोंका ख न्ध क, तथा महावग्ग, बुलबग्ग नाम उनने सार्थक नहीं हैं। सच तो यह है, कि पालि-विनयपिटकवालोंको भी ग्ब न्ध क का विनय-वस्तु नाम होना उसी तरह ज्ञात था, जिस तरह सुत्तपिटकके नि का यों का आ ग म नाम होना। चुल्ल व ग्ग के बारहवें सप्तशतिका-स्कंधक (पृप्ट. ५५७) में इसीलिये चा म्पे य क-कं ध क की जगह चा म्पे य क-वि न य- व स्तु कहा गया है। वहीसे यह भी मालूम होता है, कि विनयपिटकके प्रथम भाग विभंगका पुराना नाम सुत्त-वि भंग था। मूलसर्वास्तिवादके विनयमें पहिले भागको प्रातिमोक्ष-मूत्र और विभंग इन दो भागोंमें बाँटा गया है। भोटग्रंथ-सम्पादकोंने विभंगको प्रातिमोक्ष-मूत्रका भाप्य (=दे-िदोन्-ये-छेर- वशद्-प) कहा है। वस्तुत-विभंगका शब्दार्थ भी (अर्थ-)विभाजित करना ही होता है । चुल्लबग्गके सप्त- शतिका स्कंधकमें आये सुत्त-विभंगमे मतलब प्रातिमोक्ष-सूत्रोंका भाप्य ही है । मूलसर्वास्तिवाद-विनय- पिटकमें हम प्रातिमोक्ष-सूत्रोंको अलग पाते हैं, किन्तु पाली विनयपिटकमें पातिमोक्खपर अलग अट्ट- कथा होनेपर भी उसे पिटकके भीतर सम्मिलित नहीं किया गया : कारण यह था, कि वि भंग में वह मूल सुत्त भी आते हैं । मैंने अपने इस अनुवादमें सुत्त-विभंगके भाप्यवाले अंगको छोळ, सिर्फ प्रातिमोक्ष- सूत्रोंको ही लिया है। प्रातिमोक्ष-मूत्र भिक्षु प्रातिमोक्ष और भिक्षुणी-प्रातिमोक्ष इन दो भागोंमें बँटे हुए हैं । प्रातिमोक्ष में आये नियमोंकी संख्या मूलसर्वास्तिवाद और स्थविरवादमें इस प्रकार है- भिक्षु-नियम स्थविरवाद मूलसर्वास्तिवाद १--पाराजिक २--संघादिसेस १३ ३--अ-नियत ४~-निस्सग्गिय पाचित्तिय ५-पाचित्तिय ६~-पाटिदेसनिय

--मेम्विय

११२ ८--अधिकरण-समथ २६२ भिक्षुणी-नियम ग्थविरवाद मूलमर्वास्तिवाद ?--पागजिक ८ -मंघादिमम

--निम्मग्गिय पानिनिय

४-पाचिनिय १८० ५-पांटिदेमनिय ११ % > ३ 3 3 २० ८