( ६४ ] भिक्खुनी-पातिमोक्ख [६४।१५७-६६ सुनूँगी; कलह करतो, विवाद करती, झगड़तो भिक्षुणियोंके ( झगड़ेको सुननेके लिये ) कान लगाती है, उसे पाचित्तिय है। (इति) दिहि-वग्ग ॥१५॥ (६८) सम्मति दान १५७–जो कोई भिक्षुणी धार्मिक कर्मोंके लिये अपनी सम्मति (=छन्द) देकर पीछे हट जाती है, उसे पाचित्तिय है। १५८-जो कोई भिक्षुणी संघके फैसला करनेको वातमें लगे रहते वक्त विना (अपना) छन्द ( = सम्मति = vote ) दियेहो आसनसे उठकर चली जाय, उसे पाचित्तिय है। १५९—जो कोई भिक्षुणी सारे संघके साथ (एकमत हो) चीवर देकर पीछे पलट जातो है-मुँह देखी करके (यह) भिक्षु लोग संघके धनको वाँटते हैं-उसे पाचित्तिय है। (६०) सांघिक लाभमें भाँजी मारना १६०--जो कोई भिक्षुणो जानते हुए संघके लिये मिले हुए लाभको ( एक ) व्यक्ति ( के लाभके रूपमें ) परिणत करतो है, उसे वह पाचित्तिय है। 90) बहुमूल्य वस्तुका हटाना १६१ -(क) जो कोई भिक्षुणी रत्न या रत्नके समान ( पदार्थ )को आराम और सराय (=आवसथ)से दूसरी जगह ले या लिवा जाये, उसे पाचित्तिय है। ( ख ) रत्न या रत्नके समान ( पदार्थ )को आराम या आवसथमें लेकर या लिवाकर भिक्षुणीको उसे एक ( जगह ) रख देना चाहिये, (यह सोचकर) कि जिसका होगा वह ले जायगा। यह यहाँ उचित है। (११) सूची घर १६२–जो कोई भिक्षुणी हड्डी, दन्त या सींकके सूचीघरको वनवाये, उसके लिये ( उस सूचीघरका ) तोड़ देना पाचित्तिय (=प्रायश्चित्त ) है। (७२) चौकी, चारपाई १६३-नई चारपाई या तख्त (=पीठ)को वनवाते वक्त भिक्षुणी उन्हें, निचले ओटको छोड़ बुद्धके अंगुलसे आठ अंगुलवाले पावोंका वनवाये । इसे अतिक्रमण करनेपर ( पावोंको नाप कर ) कटवा देना पाचित्तिय है। १६४–जो कोई भिक्षुणी चारपाई या तख्तको रुई भरकर बनवाये, उसके लिये उधेड़ डालना पाचित्तिय है। (१३) वस्त्र १६५-खुजली ढाँकनेके वस्त्र (लंगोट)को बनवाते समय भिक्षुणी प्रमाणके अनुसार वनवाये । प्रमाण इस प्रकार है-बुद्धके वित्तेसे चार वित्ता लंवा दो वित्ता चौड़ा । इसका अतिक्रमण करनेपर काट डालना पाचित्तिय (=प्रायश्चित्त ) है । १६६-जो कोई भिक्षुणी बुद्धके चीवरके बराबर या उससे बड़ा चीवर बनवाये तो काट
पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१०७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।