६४।१३१-४२] ४-पाचित्तिय [ ६१ १३१-दो तीन रात सेनामें बसते हुए (भी) यदि भिक्षुणी रण-क्षेत्र (= उद्योधिका ), परेड (= बलाय ), सेना-व्यूह या अनीक ( = हाथी घोड़ा, आदिको सेनाओंका क्रमसे स्थापना )को देखने जाये तो उसे पाचित्तिय है। (५४) मद्य-पान १३२-सुरा और कच्ची शराब पीनेमें पाचित्तिय है । (५५) हँसी खेल १३३-उँगलोसे गुदगुदानेमें पाचित्तिय है। १३४-पानीमें खेल करने में पाचित्तिथ है। १३५-(व्यक्ति या वस्तुके ) तिरस्कार करनेमें पाचित्तिय है १३६-जो कोई भिक्षुणी ( दूसरी) भिक्षुणोको डरवाये तो पाचित्तिय है । (इति) चरित्त-वग्ग ॥१३॥ (५६) आग तापना १३७-वैसी जरूरत होनेके विना जो कोई नीरोग भिक्षुणी तापनेकी इच्छासे आग जलाये या जलवाये तो पाचित्तिय है। (५७) स्नान १३८–जो कोई भिक्षुणी सिवाय विशेष अवस्थाके आध माससे पहले नहाये, उसे पाचित्तिय होता है। विशेष अवस्था यह है-ग्रीष्मके पोछेके डेढ़ मास और वर्षाका प्रथम मास, यह ढाई मास और गर्मीका समय, जलन होनेका समय, रोगका समय, काम (= लोपने पोतने आदिका समय ), रास्ता चलनेका समय तथा आँधी-पानो का समय। (५८) चीवर-पात्र १३९–नया चीवर पानेपर नीला, काला या कीचड़ इन तीन दुर्वर्ण करनेवाले (पदार्थों में से किसी एकसे वरंग (=दुर्वर्ण) करना चाहिये । यदि भिक्षुणी तीन वदरंग करने वाले ( पदार्थों )मेंसे किसी एकसे नये चीवरको विना बदरंग किये, उपभोग करे तो पाचित्तिय है। १४०-जो कोई भिक्षुणी (किसी) भिक्षु, भिक्षुणी, शिक्षमाणा,' श्रामणेर या श्रामणेरी को, स्वयं चीवर प्रदान कर विना लौटाने ( को सम्मति पाये ) उपयोग करे, उसे पाचित्तिय है। १४१-जो कोई भिक्षुणो (दूसरी) भिक्षुणीके पात्र, चीवर, आसन, सुई रखनेको फोंफी (सूचीधर ) या कमरवन्दको हटाकर, चाहे परिहासके लिये हो क्यों न रक्खे, पाचित्तिय है। (५८) प्राणिहिंसा १४२-जो कोई भिन्नुणी जान कर प्राणीके जीवको मारे तो पाचित्तिय है। ." ‘ज भिक्षुणी होनेची इम्मीदवारी कर रही हो ।
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