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५८ । भिक्खुनी-पातिमोक्ख [ ६४१८९-१०५ ८९-जो भिक्षुणी वासे पानी (तिलको खली )से नहाये, उसे० । ९०-जो भिक्षुणी, भिक्षुणोसे ( अपनी देह ) मलवाये, फिँजवाये, उसे० । ९१-जो भिक्षुणी शिक्षमाणासे ( अपनी देह ) मलवाये, मिजवाये, उसे० । ९२-जो भिक्षुणो श्रामणेरीसे ( अपनी देह ) मलवाये, मिजवाये, उसे० । ९३-जो भिक्षुणी गृहस्थिनीसे (अपनी देह ) मलवाये, मिजवाये, उसे० । (३८) भिक्षुके सामने अासनपर बैठना, प्रश्न पूछना ९४–जो भिक्षुणी भिक्षुके सामने विना पूछे आसनपर बैठे, उसे । ९५-जो भिक्षुणी अवकाश माँगे विना भिक्षुसे प्रश्न पूछे, उसे० । (४०) बिना कंचुक गाँवमें जाना ९६-जो भिक्षुणी कंचुकके बिना गाँवमें प्रवेश करे, उसे० । (इति) छत्त-वग्ग ॥९॥ (४१) भाषणकी अनियमता ९७-जानबूझकर झूठ बोलनेमें पाचित्तिय है। ९८-अोमसवाद (=वचन मारनेमें) पाचित्तिय है। ९९-भिक्षुणियोंकी चुगली करनेमें पाचित्तिय है । १००-भिक्षुणीका, अ-भिक्षुणीको पदोंके क्रमसे धर्म (= बुद्धोपदेश ) बँचवाना पाचित्तिय है। (४२) साथ लेटना १०१-जो कोई भिक्षुणी अन्-उपसंपन्नाके साथ दो तीन रातसे अधिक एक साथ सोये उसे पाचित्तिय है। १०२-जो भिक्षुणी पुरुषके साथ शयन करे, उसे पाचित्तिय है। (४३) धर्मोपदेश १०३-पण्डिता (=विज्ञा )को छोड़ जो कोई भिक्षुणी पुरुषको पाँच छः वचनोंसे अधिक धर्मका उपदेश दे उसे पाचित्तिय है। (४४) दिव्य-शक्ति प्रदर्शन १०४-जो कोई भिक्षुणी अनुपसंपन्नाको यथार्थ दिव्य-शक्तिके वारेमें भी कहे उसे पाचित्तिय है। (४५) अपराध-प्रकाशन १०५-जो कोई भिक्षुणी ( किसो ) भिक्षुणीके दुठ्ठल' अपराधको भिक्षुणियोंकी सम्मतिके विना अन्-उपसम्पन्ना (=अ-भिक्षुणी)से कहे, उसे पाचित्तिय है । १ मिलाओ-भिक्खु-पातिमोर व ६५. ३.६४ (पृष्ठ २३-२८)