विनय-पत्रिका हरनेवाले श्रीरामजीके चरणोंकी शरणमें यह तुलसीदास है ॥९॥ [५२] देव- कोशलाधीश, जगदीश, जगदेकहित, अमितगुण, विपुल विस्तार लीला। गायति तव चरित सुपवित्र श्रुति शेष शुक शंभु-सनकादि मुनि मननशीला ॥१॥ वारिचर-चपुरधरिभक-निस्तारपर,धरणिकृत नावमहिमातिगुर्वी सकल यशांशमयउग्र विग्रह क्रोड,मर्दिदनुजेश उद्धरण उर्वी ॥२॥ कमठ अति विकटतनु कठिन पृष्ठोपरी, भ्रमतमंदर कंडु-सुखमुरारी प्रकटकृत अमृत, गो, इंदिरा ईदु, दारकाद-आनंदकारी॥३॥ मनुज मुनि-सिद्ध-सुर नाग-त्रासक, दुष्टदनुज द्विज-धर्म-मरजाद- हर्ता। अतुल मृगराज वपुरिति विरति अरि, भक्त प्रहलाद-महलाद- कर्ता॥४॥ छलन बलि कपट-चटु रूप वामन ब्रह्म, भुवनपर्यंत पद तीन करणं । चरण-नख-नीर त्रैलोक-पावन परम, विवुध-जननी-दुसह-शोक, हरणं ॥ ५॥ क्षत्रियाधीश-करि निकर नव-केसरी,परशुधर विप्र-सस-जलदरूपं बीस भुजदंड दससीस खंडन चंड वेग सायकनौमिरामभूपं ॥६॥ भूमिभर-भार-हर, प्रकट परमात्मा, ब्रह्म नररूपधर भक्तहेतू । वृष्णि-कुल-कुमुद-राकेश राधारमण, कंस-बसाटवी-धूमकेतू॥७॥ प्रवल पाखंड महि मंडलाकुलदेखि, निंधकृत अखिल मखकर्म-जालं शुद्ध बोधेकघन ज्ञान-गुणधाम,अज-चौद्ध-अवतारवंदे कपालं
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