पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/७२

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विनय-पत्रिका बड़ा सरल है। उन्हें अपना गुण, शत्रुद्वारा किया हुआ अनिष्ट, दासका अपराध और दिये हुए दानकी बात कभी याद ही नहीं रहती ॥२॥ उनकी आदत भूल जानेकी है; जिसका कहीं मान नहीं होता, उसको वह मान दिया करते हैं, पर वह भी भूल जाते हैं। हे माता ! तुम उनसे कहना कि तुलसीदासको न भूलिये क्योंकि उसे मन, वचन और कर्मसे स्वप्नमें भी किसी दूसरेका आश्रय नहीं है ॥ ३॥ श्रीराम-स्तुति [४३] जयति सचिव्यापकानंद परब्रह्म-पद वित्रह-व्यक लीलावतारी । विकल ब्रह्मादि, सुर, सिद्ध, संकोचवश, विमल गुणमोह नर- देह-धारी ॥१॥ जयति कोशलाधीश कल्याण कोशलसुता, कुशल कैवल्य-फल चारु चारी वेद-बोधित करम-धरम-धरनीधेनु, विप्र-सेवक साधु-मोदकारी।। जयति ऋषि-मखपाल, शमन-सज्जन-साल, शापवश मुनिवधू- पापहारी। भजि भवचाप, दलि दाप भूपावली, सहित भृगुनाथ नतमाथ भारी॥३॥ • जयति धारमिक-धुर, धीर रघुवीर गुर-मातु-पितु-बंधु- वचनानुसारी। चित्रकूटाद्रि विन्ध्याद्रि दंडकविपिन, धन्यकृत पुन्यकानन- विहारी ॥ ४॥