पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/७

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[१०] पद-सूचना पढ-सख्या पद-सूचना पद-संख्या मेरी न बने बनाये मेरे ... २६१ | राम जपुजीह!जानि, प्रीति सौ २४७ मेरे रावरियै गति है रघुपति २५३ | राम जपु, राम जपु, राम जपु मेरो कह्यो सुनि पुनि भाव २६४ बावरे मेरो भलो कियो राम ... ७२ राम-नामके जपे जाई ... १८४ मेरो मन हरिजू ! हठ न तजै ८९ राम!प्रीतिकी रीति ... १८३ मैं केहि कहौं विपति अति भारी १२५ रामभद्र ! मोहिं आफ्नो ... १५० मैं जानी हरिपद रति नाही १२७ राम भलाई आपनी ... १५२ मैं तोहिं अब जान्यो ससार १८८ राम!राखिये सरन मैं हरि पतित-पावन सुने ... १६० राम राम जपु जिय मैं हरि, साधन करइ नजानी १२२ राम राम रमु, राम राम रटु ६५ मोह जनित मल लाग .. ८२ राम राम रामजीह जौलौं ... ६८ मोह-तम तरणि ... १०/ राम राम राम राम राम मोहि मूढ मन बहुत बिगोयो २४५ राम जपत . १३० यह बिनती रघुबीर गुसाई १०३ राम राय | बिनु रावरे .. २७७ यहै जानि चरनन्हि चित लायो २४३ | राम | रावरो नाम मेरो ... २५४ याहि ते मैं हरि ग्यान गॅवायो २४४ राम रावरो नाम साधु-सुरतरु २५५ यों मन कबहूँ तुमहिं नलाग्यो १७० राम | रावरो सुभाउ, गुन । २५१ रघुपति बिपति दवन २१२ रामसनेही सों तें न सनेह कियो १३५ रघुपतिभगति करत कठिनाई १६७ राम-से प्रीतमकी प्रीति रहित १३२ रघुबर रावरि यह बड़ाई १६५ रावरी सुधारी जो विगारी २५९ रघुवरहि कबहुँ मन लागिहै २२४ रुचिर रसना तू राम राम २२९ राख्यो राम सुखामी सों • १७६ लाज न लागत दास कहावत १८५ राम कबहुँ प्रिय लागिहौ २६९ | लाम कहा मानुष तनु पाये २०१ राम कहतंचल रामकहत चलु १८९ | लाल लाडिले लखन ... ३७ रामको गुलाम .... ७६ | लोक बेद हूँ बिदित वात २४६ रामचन्द्र रघुनायक !तुमसों हौं १४१ / विश्व-विख्यात, विश्वेश • ५४