पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/४५३

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विनय-पत्रिका केशोंको पकडकर घसीटता हुआ सभा-मण्डपके बीचमें लाया और उसकी साडीको पकड़कर खींचने लगा । द्रौपदीने करुणापूर्ण नेत्रोंसे सभाकी ओर देखा, परन्तु जब कोई भी उसकी सहायताके लिये आगे बढ़ता न दिखायी दिया तो उसने अपनी लाज बचानेके लिये आर्त्तखरसे करुणासिंधु भगवान्को पुकारा । भगवान् श्रीकृष्णने उसकी पुकार सुन ली (कुरुराज-बन्धु ) दुःशासन साड़ीको खींचते-खींचते थक गया परन्तु उसका छोर न लगा । प्रभुकी कृपाके आगे उसकी एक न चली । द्रौपदीकी लाज रह गयी। अर्जुन 'नर' ऋषिके अवतार माने जाते थे, इससे द्रौपदीको 'नर-नारी' कहा गया है। ९४-गनिका- पिङ्गला नामकी एक वेश्या थी। एक दिन जब वह शृङ्गार किये हुए अपने किसी प्रेमीको प्रतीक्षामें बैठी और आधी राततक वह न आया तो उसे बड़ी ग्लानि हुई । वह सोचने लगी कि जितना समय मैंने इस पापपूर्ण प्रतीक्षामें लगाया उतना यदि भगवान्के भजनमें लगाती तो मेरा उद्धार हो जाता । उसी दिनसे उसने चेश्या-वृत्ति छोड़कर भगवद्भजनमें मन लगाया और भगवान्की कृपासे उसका उद्धार हो गया । व्याघ- प्राचीनकालमें रत्नाकर नामका एक व्याध था । वह ब्राह्मण- कुलमें उत्पन्न होकर भी व्याधका काम करता था । वह जंगलम पशुओंका शिकार करनेके सिवा वनके मार्गसे होकर जानेवालोंका सर्वख भी छीन लेता था। एक दिन दैववश, देवर्षि नारद उसी मार्गसे होकर निकले । रत्नाकरने उनको घेर लिया । नारदजीने