४५४ विनय-पत्रिका था। जब मरते समय यमदूत इसे मुश्के बांधने लगे तो यह भयभीत होकर आर्त्तखरसे, 'नारायण-नारायण' पुकारने लगा । इस पुकारसे उसका पुत्र तो नहीं आया, पर भगवान् नारायणके दूत वहाँ आ पहुँचे । उन्होंने हठपूर्वक यमदूतोंसे यह कहकर उसका पिण्ड छुड़ाया कि यह परम वैष्णव है, इसने बड़े ही आर्त्तखरसे भगवानका नामोच्चारण किया है। ६०-मार्कण्डेय"प्रलयकारी- मार्कण्डेय ऋषि बचपनसे ही बड़े वीर्यवान् और तपोनिष्ठ थे। उनकी उग्र तपस्याको देखकर इन्द्र भी भयभीत हो गये थे और उसमें विघ्न उपस्थित करनेके विचारसे कामदेवको अपनी सारी सेनाके साथ भेजा था । परन्तु कामदेव कोटिकला करके भी अपने प्रयत्नमें सफल नहीं हुए। इसके बाद भगवान् नर-नारायणरूपसे उनके सम्मुख उपस्थित हुए, और उनसे वर माँगनेके लिये कहा । मार्कण्डेय मुनिने भगवान्की माया देखनेकी इच्छा प्रकट की । फलस्वरूप उन्हें सारा ब्रह्माण्ड जलमग्न होते हुए दिखलायी दिया । ७८-विटप- एक बार कुवेरके पुत्र नलकूबर और मणिग्रीवने प्रमादवश नारदजीकी हँसी उड़ायी । इसपर नारदजीने उन्हें शाप दिया कि 'तुमलोग बडे ही जडबुद्धि हो, जाओ वृक्ष हो जाओ।' पीछे जब उन लोगोंने प्रार्थना की तव दयाल नारद मुनिने शापोद्धारनिमित्त कह दिया कि गोकुलमें जब भगवान् श्रीकृष्णका अवतार होगा तो उनके चरणोंके स्पर्शसे तुम्हारा उद्धार हो जायगा । यह दोनों भाई नारदके
पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/४४९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।