परिशिष्ट पदोंमें आये हुए कथा-प्रसंग पद-संख्या ३ कालकूट-विष- देवता और असुरोंने एक बार मेरु-पर्वतकी मथानी और शेषनागका दण्ड बनाकर समुद्रका मन्थन किया। उसमे सबसे पहले हलाहल विष निकला और उसने दसों दिशाओंको अपनी ज्वालासे व्याप्त कर दिया। फिर तो देवता और असुर सभी त्राहि-त्राहि करने लगे । सबोंने मिलकर विचारा कि बिना भक्तवत्सल भगवान् शङ्करके इस महाघातक विषसे त्राण पाना कठिन है । इसलिये उन्होंने एक साथ आखिरसे भगवान् शङ्करको पुकारा । भक्त-आर्तिहर करुणामय भगवान् शङ्कर शीघ्र ही प्रकट हुए और उनको भयभीत देखकर हलाहल विपको उठाकर पान कर गये । परन्तु गीघ्र ही उन्हें स्मरण हुआ कि हृदयमे तो ईश्वर अपनी अखिल सृष्टिके साथ विराजमान हैं, इसलिये उन्होंने उस विषको कण्ठसे नीचे नहीं उतरने दिया। उस विषके प्रभावसे उनका कण्ठ नीला हो गया और दोषपूर्ण वह विप भगवान्का भूपण बन गया, तभीसे शिव 'नीलकण्ठ' कहलाने लगे। त्रिपुर-वध- तारक नामका एक असुर था। उसके तीन पुत्र हुए- तारकाक्ष, विन्दुमाली और कमललोचन । उन तीनोंने महाघोर तप करके ब्रह्माजी और शिवजीको प्रसन्न किया तथा उनसे अन्तरिक्षके तीन पुरोंका अधिकार प्राप्त किया। अधिकार-मदसे उन्मत्त वे असुर
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