पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/४०

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- विनय-पत्रिका और त्रिलोचन ( एक तीर्थ) इसके नेत्र हैं और कर्णघण्टा नामक तीर्य इसके गलेका घण्टा है ॥ ४॥ मणिकर्णिका इसका चन्द्रमाके समान सुन्दर मुख है, गङ्गाजीसे मिलनेवाला पाप-ताप-नाशरूपी सुख इसकी शोभा है । भोग और मोक्षरूपी सुखोंसे परिपूर्ण पञ्चकोसीकी परिक्रमा ही इसकी महिमा है ॥ ५॥ दयालुहृदय विश्वनाथजी इस कामधेनुका पालन-पोषण करते हैं और पार्वती-सरीखी स्नेहमयी जगजननी इसपर सदा प्यार करती रहती है; आठों सिद्धियाँ, सरखती और इन्द्राणी शची इसका पूजन करती हैं; जगत्का पालन करनेवाली लक्ष्मी-सरीखी इसका रुख देखती रहती हैं ॥ ६॥ 'नमः शिवाय' यह पञ्चाक्षरी मन्त्र ही इसके पॉच प्राण हैं । भगवान् विन्दुमाधव ही आनन्द है। पश्चनदी (पञ्चगङ्गा) तीर्थ ही इसके पञ्चगज्य* हैं। यहाँ संसारको प्रकट करनेवाले रामनामके दो अक्षर रकार' और 'मकार' इसके अधिष्ठाता, ब्रह्म और जीव हैं ॥ ७॥ यहाँ मरनेवाले जीवोंका सब सुकर्म और कुकर्मरूपी घास यह चर जाती है, जिससे उनको वही परमपदरूपी पवित्र दूध मिलता है, जिसको ससारके विरक्त महात्मागण चाहा करते हैं ॥ ८॥ पुराणों में लिखा है कि भगवान् विष्णुने सम्पूर्ण कला लगाकर अपने हाथोंसे इसकी रचना की है। हे तुलसीदास ! यदि तू सुखी होना चाहता है तो काशीमें रहकर श्रीरामनाम जपा कर ॥ ९॥ चित्रकूट-स्तुति राग बसन्त [२३] सबसोच-विमोचनचित्रकूट । कलिहरन, करन कल्यान बूट ॥१॥

  • दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्र ।