३३१ विनय-पत्रिका से भी गुणको सुमेरु पर्वतक सममान् मानने और उसके करोड़ों दोषोंको देगर भी उन्हें गूट जाने हैं। स्योंकि वे बड़े ही कृपालु, भक्तोंक ( मनोरयको पूर्ण करने वाले) चिन्तामगितरूप, पवित्र करनेके बिरदवाले और पनितोंको (ससार-सागरमे ) उदार कर देनेवाले है॥२॥ स्मरण करते हो, सहज ही मिल जाते है और अपने दासके दु.ग्वको सुनकर इतनी जल्दी (दुःन दूर करने- के लिये ) दोटे आते है कि ( देर होनेके भयमे ) वे अपने पीताम्बरतकको नहीं संभालते । इस बात के साक्षी पुराण, वेद, शाह हैं, द्रौपदी और गजेन्द्र ( आदि अच्छी तरह ) जानते हैं ॥ ३ ॥ जिनके लोभ, मोह, मद और काम नहीं है, ऐसे करि और ज्ञानी महात्मा जिनका यश गाते हैं, हे तुलसीदास ! सारी (लोक परलोककी) आगाओंको छोड़कर अहल्याके उद्धार करनेवाले उन प्रभु श्रीकोशल- नायका ही तू भजन कर ॥ ४॥ [२०७] भजिवे लायक सुखदायकरघुनायकसरिस सरनप्रद दूजो नाहिन । आनंदभवन,दुखदवनासोकसमन रमारमन गुनगनत सिराहिन॥ आरत,अधम,कुजाति,कुटिल,खल,पतित, सभीत कहे जेसमाहिन सुमिरत नाम विवसह वारक पावत सो पद, जहाँसुर जाहिंन॥ जाके पद-कमल लुब्धमुनि-मधुकर, विरतजे परमसुगतिहुलभाहिन तुलसिदास सठतेहि नभजलि कस,कारुनीकजोअनाहिं दाहिन॥ भावार्थ-भजन करनेयोग्य, सुख देनेवाला और शरणमें रखने- वाला खामी श्रीरघुनाथजीके समान दूसरा कोई नहीं है। उन आनन्दधाम, दुःखोंके नाश करनेवाले, शोकके हरनेवाले, लक्ष्मीरमण
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