विनय-पत्रिका २५४ भावार्थ-श्रीरामजीने अपने भले खभावसे किसका भला नहीं किया ? युग-युगसे श्रीजानकीनाथजीका यह कार्य जगत्में प्रसिद्ध है ॥ १॥ ब्रह्मा आदि देवताओंने पृथ्वीका दु.ख सुनाकर (जब ) विनय की थी, ( तब पृथ्वीका भार हरनेके लिये और राक्षसोंको मारनेके लिये ) सूर्यवंशरूपी कुमुदिनीको प्रफुल्लित करनेवाले चन्द्ररूप एवं अमृतके समान आनन्द देनेवाले श्रीरामचन्द्रजी प्रकट हुए ॥२॥ विश्वामित्र ताड़काका तेज देखकर ओलेकी नाई गले जाते थे। प्रभुने ताड़काको मारकर, शत्रुको मित्रका-सा फल दिया एवं क्रोधरूपी परम कृपा की । भाव यह है कि दुष्ट ताड़काको सद्गति देकर उसपर कृपा की॥३॥ खय जाकर शिला ( बनी हुई अहल्या) का पाप-संताप दूर कर दिया, फिर (धनुषयज्ञके समय ) शोक- सागरमेंसे डूबते हुए मिथिलाके महाराज जनकको निकाल लिया, अर्थात् धनुष तोड़कर उनकी प्रतिज्ञा पूरी कर दी ॥ ४ ॥ परशुराम क्रोधीके ढेर एवं अहंकार और ममत्वके धनी थे, उन्हें भी आपने देखते ही शान्ति और समताका पात्र बना लिया। अर्थात् वह क्रोधीसे शान्त और अहंकारीसे समद्रष्टा होगये॥५॥ माता (कैकेयी) और पिताकीआज्ञा मानकर प्रसन्नचित्तसेवन चलेगये। ऐसा धर्मधुरन्धर और धीरजधारी तथा सद्गुण और शीलको जीतनेवाला दूसरा कौन है? कोई भी नहीं ॥६॥ नीच जातिका गरीब गुह निषाद, जिसने ऐसा कौन जीव है जिसे नहीं खाया हो अर्थात् जो सब प्रकारके जीवोंका भक्षण कर चुका था, उसने भी पवित्र प्रेमके कारण श्रीरघुनाथजीसे सखा-जैसा आदर प्राप्त किया ॥ ७॥ शबरी और गीध ( जटायु) को सरकारके साथ मोक्ष देनेवाला कौन है और
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