२५४ विनय-पत्रिका खेल हैं ॥ १॥ काल, कर्म और इन्द्रियरूपी प्राहकोंने मुझे घेर रक्खा है। जब मैं उनके हाथ विकना कबूल नहीं करता, तब वे मुझे बाँधकर मुझपर कडा दाम चढ़ाते हैं, अर्थात् जैसे-तैसे लालच दिखाकर अपने वशमें करना चाहते हैं ॥२॥ आपका नाम बन्धनसे छुड़ाने- वाला है और आपका वाना भी बड़ा है जब मैंने उन ( ग्राहकों) से यह कहा कि भाई ! मैं तो रघुनायजीके हाय बिक चुका हूँ, तब वे कपट-प्रेम दिखाकर मुझसे मेरे हृदयमें बसनेके लिये स्थान माँगने लगे ( यदि उन्हें स्थान दिये देता हूँ, तो अभी तो वे दीनता दिखा रहे हैं, पर जगह मिल जानेपर धीरे-धीरे उसपर अपना अधिकार जमा लेंगे) ॥ ३ ॥ अबतक मैं आपके नामके सहारे बचा रहा, पर अब तो यह कलियुग मुझे जेर किये है। अतएव अब इस गरीव गुलामका पालन कीजिये, नहीं तो फिर खोजनेसे भी इसका पता न लगेगा॥४॥हे नाथ! आपने जिस लीलासे पक्षी(उल्लू) की और कुत्तेको १ वनमें उल्लू और गीध एक ही घरमें रहते थे। एक दिन गीधने पुरी नीयतसे घरपर अपना अधिकार करना चाहाऔर उल्लूसे कहा- हमारा घर खाली कर दो, इसपरतुम्हारा कोई अधिकार नहीं नहीं मानते तोचलोराजाजी- से न्याय करा लें। अन्तमें दोनों श्रीरामजीके दरबारमें आये । रामचन्द्रजीने उल्लूसे कहा-'घर किसका है ? तू उसमें कबसे रहता है। उल्लूने उत्तर दिया-महाराज ! जबसे वृक्षोंकी सृष्टि हुई तबसे मैं उस घरमें रहता हूँ। गीधने कहा कि जबसे मनुष्योंकी सृष्टि हुई तबसे मैं रहता हूँ।' भगवान्ने कहा कि वृक्षोंकी सृष्टि मनुष्योंसे पहले हुई है, इसलिये घर उल्लूका ही है, तुम्हारा नहीं । तुम घर खाली कर दो।' २. एक दिन श्रीरामजीके दरबारमें एक कुत्ता आया और रोता हुआ करने लगा-महाराज! तीर्थसिद्धिनामक ब्राह्मणने बिना हीअपराध लाठीसे मेरा सिर फोड़ दिया, आप मेरा न्याय कर दीजिये । भगवान्ने ब्राह्मणको -
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