पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/२१८

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- २२३ विनय-पत्रिका मायारूपी ) जिस लक्ष्मीके पतिने गर्भकालकी इस विपत्तिमें मुझे ऐसी विवेक बुद्धि दी है वही मेरी इससे तुरंत रक्षा करे।' फिर तु (पूर्वजन्मोंमे भजन न करनेके लिये) अपने मनमे बहुत भाँतिसे ग्लानि मानकर कहने लगा कि अबकी बार (संसारमे) जन्म लेकर तो चक्रधारी भगवान्का भजन ही करूंगा। ऐसा विचार- कर ज्यों ही चुप हुआ कि प्रसवकालके पवनने तुझ अपराधीको प्रेरित किया, उस अति प्रचण्ड वायुके द्वारा प्रेरित होकर तूने (जन्मके समय ) नाना प्रकारके कष्टोंको सहा । उस समय उस भयानक कष्टकी आगमे तेरा ज्ञान, ध्यान, वैराग्य और अनुभव सभी कुछ जल गया अर्थात् मारे कष्टके तू सब भूल गया ! अत्यन्त कटके कारण व व्याकुल हो गया और थोडा वल होनेसे एक क्षण भी तुझसे बोला नहीं गया। उस समयके तेरे दारुण दुःखको किसीने न जाना, उलटे सब लोग (पुत्र होनेके आनन्दमे ) हर्षित होकर गाने लगे। फिर बचपनमे तूने जितने महान् कष्ट पाये, वे इतने अधिक है कि उनकी गणना करना असम्भव है । भूख, रोग और अनेक बड़ी-बडी वाधाओंने तुझे घेर लिया, पर तेरी मॉको तेरे इन सब कष्टों- का यथार्थ पता नहीं लगा | माँ यह नहीं जानती कि बच्चा किसलिये रो रहा है, इससे वह बार-बार ऐसे ही उपाय करती है, जिससे तेरी छानी और भी अधिक जले । (जैसे अजीर्णके कारण पेट दुखनेसे बच्चा रोता है, पर माता उसे भूखा समझकर और खिलाती