पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/१७०

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विनय-पत्रिका कोटिहुँ मुसा और भारत कबहुँ पल उद्धार किया ? किस देवताने पक्षी (जटायु), पशु (ऋक्ष-वानर आदि ), व्याध (वाल्मीकि ), पत्थर (अहल्या ), जड वृक्ष ( यमलार्जुन) और यवनोंका उद्धार किया है ? ॥२॥ देवता, दैत्य, मुनि, नाग, मनुष्य आदि सभी वेचारे मायाके वश हैं । (खय बँधा हुआ दूसरोंके बन्धनको कैसे खोल सकता है इसलिये ) हे प्रभो ! यह तुलसीदास अपनेको उन लोगोंके हाथोंमे सौंपकर क्या करे ॥३॥ [१०२] हरि ! तुम बहुत अनुग्रह कीन्हों। साधन धाम विवुध दुरलभ तनु, मोहि कृपा करि दीन्हों ॥१॥ कोटिहुँ मुख कहि जात न प्रभुके, एक एक उपकार । तदपि नाथ कछु और माँगिहीं, दीजै परम उदार ॥२॥ विषय चारि मन मीन भिन्न नहिं होत कबहुँ पल एक । ताते सही विपति अति दारुन, जनमत जोनि अनेक ॥ ३॥ कृपा-डोरि वनसी पद अंकुस, परम प्रेम-मृदु-चारो। एहि विधि वेधि हरहु मेरो दुख, कौतुक राम तिहारो॥ ४॥ हैं श्रुति विदित उपाय सकल सुर, केहि केहि दीन निहोरै । तुलसिदास येहि जीव मोह रजु जेहि बाँध्यो सोइ छोरै ॥५॥ भावार्थ-हे हरे ! आपने बडी दया की, जो मुझे देवताओंके लिये भी दुर्लभ, साधनोके स्थान मनुष्य-शरीरको कृपापूर्वक दे दिया ॥ १॥ यद्यपि आपका एक-एक उपकार करोड़ों मुखोंसे नहीं कहा जा सकता, तथापि हे नाथ ! मैं कुछ और माँगता हूँ, आप बडे उदार हैं, मुझे कृपा करके दीजिये ॥ २ ॥ मेरा मनरूपी मच्छ विषयरूपी जलसे एक पलके लिये भी अलग नहीं होता, इससे मैं ॥३॥