पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/१६६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२७१ विनय-पत्रिका [९९] विरद गरीबनिवाज रामको। गावत वेद-पुरान, संभु-सुक, प्रगट प्रभाउ नामको ॥१॥ ध्रुव-प्रह्लाद विभीषन,कपिपति,जड़,पतंग,पांडव,सुदामको। लोक सुजस परलोक सुगति, इन्हमें को है राम कामको ॥ २॥ गनिका, कोल, किरात, आदिकबि इन्हते अधिक बामको। बाजिमेध कब कियो अजामिल गज गायो कब सामको ॥३॥ छली, मलीन, हीन सव ही अँग, तुलसी सो छीन छामको। नाम-नरेस-प्रताप प्रवल जग, जुग जुग चालत चामको ॥ ४॥ भावार्थ-श्रीरामजीका बाना ही गरीबोंको निहाल कर देना है । वेद, पुराण, शिवजी, शुकदेवजी आदि यही गाते हैं। उनके श्रीरामनामका प्रभाव तो प्रत्यक्ष ही है।॥१॥ध्रुव,प्रह्लाद, विभीषण,सुग्रीव, जड़ ( अहल्या), पक्षी ( जटायु, काकभुशुण्डि ), पाँचों पाण्डव और सुदामा-इन सबको भगवान्ने इस लोकमे सुन्दर यश और परलोकमे सद्गति दी। इनमेंसे रामके कामका भला कौन था ? ॥ २॥ गणिका ( जीवन्ती ), कोल-किरात (गुह निषाद आदि) तथा आदिकवि वाल्मीकि, इनसे बुरा कौन था ? अजामिलने कत्र अश्वमेध यज्ञ किया था, गजराजने कब सामवेदका गान किया था ? ॥ ३॥ तुलसीके समान कपटी, मलिन, सब साधनोंसे हीन, दुबला- पतला और कौन है ? पर श्रीरामके नामरूपी राजाके राज्यमें उसके प्रबल प्रतापसे युग-युगसे चमड़ेका सिक्का भी चलता आ रहा है अर्थात् नामके प्रतापसे अत्यन्त नीच भी परमात्माको प्राप्त करते रहे हैं, ऐसे ही मैं भी प्राप्त करूँगा ॥ ४ ॥