१६७ विनय-पत्रिका भावार्थ-हे श्रीरामजी! यदि यमराज सब काम-काज छोडकर केवल मेरे ही पापों और दोषोंके हिसाब-किताबका खयाल करने लगेंगे, तब भी उनको गिन नहीं सकेंगे ( क्योंकि मेरे पापोंकी कोई सीमा नहीं है)॥१॥ (और जब वह मेरे हिसाबमे लग जायगे, तब उन्हे इधर उलझे हुए समझकर ) पापियोंके दल-के-दल छूटकर भाग जायेंगे। इससे उनके मनमे बडी चिन्ता होगी। ( मेरे कारणसे) अपने अधिकारमें बाधा पहुँचते देखकर ( भगवान्के दरबारमें अपने- को निर्दोष साबित करनेके लिये ) वह आपके सामने मेरी बहुत वडाई कर देगे (कहेंगे कि तुलसीदास आपका भक्त है, इसने कोई पाप नहीं किया, आपके भजनके प्रतापसे इसने दूसरे पापियोंको भी पापके बन्धनसे छुड़ा दिया) ॥ २॥ तब आप हँसकर अपने भक्त यमराजका विश्वास कर लेंगे और मुझे भक्तोंमें शिरोमणि मान लेगे । वात यह है कि हे कोसलेस ! जैसे-तैसे आपको मुझे अपनाना ही पडेगा ॥ ३॥ [९६] जौ पै जिय धरिही अवगुन जनके। तो क्यों कटत सुकृत-नखते मो पै, विपुल वृंद अघ-चनके ॥ १ ॥ कहिहै कौन कलुष मेरे कृत, करम वचन अरु मनके। हारहिं अमित सेष सारद श्रुति, गिनत एक-एक छनके ॥ २॥ जो चित चढ़े नाम महिमा निज, गुन-गन पावन पनके । तो तुलसिहि तारिहौ विप्र ज्यों दसन तोरि जमगनके ॥ ३ ॥ भावार्थ हे नाथ ! यदि आप इस दासके दोषोंपर ध्यान देंगे,
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