- १२५ . विनय-पत्रिका कटितट रटति चार किकिनि-रव, अनुपम, वरनि न जाई॥ हम जलज कल कलित मध्य जनु, मधुकर मुखर नुहाई ॥५॥ उर विसाल भृगुचरन चारु अति, सूचत कोमलताई। ककन चार विविध भूषन विधि, रचि निज कर मन लाई ॥६॥ गज-मनिमाल बीच भ्राजत कहि जाति न पदक निकाई। जनु उडुगन-मंगल वारिदपर, नवग्रह रची अथाई ॥७॥ भुजग-भोग-भुजदंड कंज दर चक्र गदा पनि आई। सोभासीव ग्रीव, चिवुकाघर, वदन अमित छवि छाई ॥ ८॥ कुलिस, कुंद-कुडमल, दामिनि-दुति, दसनन देखि लजाई। 'नासा-नयन कपोल, ललित श्रुति कुंडल भ्रू मोहि भाई ॥ ९ ॥ कुचित कर सिर मुकुट, भालपर, तिलक कहाँ समुझाई। अलप तड़ित जुग रेख इंदु मह रहि तजि चंचलताई ॥१०॥ निरमल पीत दुकूल अनूपम, उपमा हिय न समाई। बहु मनिजुत गिरि नील सिखरपर कनक-बसन रुचिराई ॥११॥ दच्छ माग अनुराग-सहित इंदिरा अधिक ललिताई। हेमलता जनु तर तमाल दिग, नील निचोल ओढ़ाई ॥१२॥ सत सारदा सेष श्रति मिलिक, सोभा कहि न सिराई । तुलसिदास मतिमंद द्वंदरत कहै कौन विधि गाई ॥१३॥ ____भावार्थ-इस शरीरका यही बड़ा भारी फल और इतनी ही महिमा है कि नेत्र तप्त होकर श्रीविन्दुमाधवकी नखसे शिखतक शोभा देखें ॥१॥ जिनके निर्मल, किशोर ( सोलह वर्षके), पुष्ट और सुन्दर श्याम शरीरकी शोभा असीम है । ऐसा जान पड़ता है माना नील कमल, (श्याम ) मेघ, तमाल और नीलम मणिने इन्हीके शरीरसे शोभा प्राप्त की है।.२॥ जिनके कोमल चरणोमें सुन्दर
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