२२३ विनय-पत्रिका शुकदेवजी, शेषजी और अन्य मुनिजनरूपी भ्रमर सदा निवास किया करते हैं॥१॥आप निर्मल नीलमणिके समान श्यामरूप हैं, सौ करोड़ कामदेवोंके समान आपकी सुन्दरता है, पीताम्बर धारण किये हैं। वह पीताम्बर नीले बादलमे बिजलीके समान शोभित हो रहा है। आपके नेत्र लाल कमलके समान हैं, सुन्दर चितवन है। आप भक्तोंको सुख देनेवाले हैं और खभावसे ही करुणा-रससे भीगे रहते हैं ॥२॥ आप कालरूपी हाथीको मारनेके लिये सिंह, राक्षसरूपी वनके जलानेके लिये अग्नि और मोहरूपी रात्रिके नाश करनेके लिये सूर्यरूप हैं । चारों मुजाओंमें शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किये हैं। आपके हाथमें श्वेत शंख कमलके ऊपर बैठे हुए राजहंसके समान शोभित हो रहा है ॥३॥ मस्तकपर मुकुट, कानोंमें कुण्डल, भालपर तिलक, भ्रमरसमूहके समान काली अलके, टेढ़ीभ्रुकुटी, सुन्दर दाँत, होठ और नासिका बडी ही सुन्दर हैं । सुन्दर कपोल और शखके समान श्रीवा मानो सब सुखकी सीमा है। हे हरे ! आपकी मधुर मुसकान चन्द्रकिरण और कुन्दकुसुमके समान है।॥ ४॥ आपके हृदयपर नयी मञ्जरियोसहित विशाल वनमाला और सुन्दर श्रीवत्सका चिह्न शोभायमान हो रहा है। आप ब्राह्मणोंका बहुत आदर करनेवाले है तथा क्रोधरहित, अजन्मा, अपरिमित पराक्रमी, महान् महिमावाले और अनन्त हैं। आपको धन्य है, धन्य है|५|| आपहृदयपरहार, भुजाओंपर सनिक बाजूबंद, हाथोंमें रत्नजड़ित कङ्कण और कटिदेशमें मणियोंकी तागड़ी धारण किये हैं। दोनों चरणोंमें हंसके समान सुन्दर शब्द करनेवाले नूपुर पहिने हैं। आपके समस्त अङ्ग सुन्दर और आपका सारा ही वेष सुन्दरतामय है ॥६॥ समस्त सौभाग्यमयी तीनों
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