पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/८

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विद्यापति ।

18:08, 13 February 2019 (UTC)अजीत कुमार तिवारी (talk) 18:08, 13 February 2019 (UTC)18:08, 13 February 2019 (UTC) दूती ।। खन भरि नहि रह गुरुजन माझे । वेकत अङ्ग न झपावय लाजे ॥२॥ बालाजन सङ्गे यव रहइ । तरुनी पाइ परिहास हँहि करई ।।४।। माधव तुय लागि भेटल रमनी । के कहु बाला के कहु तरुनी ॥६॥ केलिक रभस यव शुने आने । अनतए हेरि ततहि दृए काने ॥८॥ इथे यदि केंओ करए परचारी । कॉदन माखी हसि दए गारी ॥१०॥ सुकवि विद्यापति भने । बाला चरित रसिक जनजाने ॥१२॥ ( ४ ) तेहि = तिसकी। (७) अने=दूसरे के पास । (९) परचारी=इट्टा । (१०) माखी=मिला कर। दूती । ११ भौंह भाङ्गि लोचन भैल आड़ । तैअओ न शैशव सीमा छाड़ ॥२॥ अावे हास हृदय चीर लए थोए । कुच कञ्चन अंकुरए गए ॥४॥ हैरि हल माधव कए अवधान । जौयन परसे सुमुखि वे आन ॥६॥ सखि पूछइते वे दरसए लाज । सीचि सुधाए अध बोलिअ बाजे ॥८॥ एत दिन शैशवे लाओल साठ । वे सबै मदने पढ़ाउलि पाठ ॥१०॥ ( १ ) आङ-=वक (कटाक्ष )। (३) थेपिरसती है। ( ४ ) गैप =गापन करती है। (५) हलचल।। (६) आन= अन्य रुप । (८) बाज=घेलना। । मां - ती ।