पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/६०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

विद्यापति । ठूती । १० १ यदि अवकास केइए नहि तोहि । का लागि ततए पठलए मोहि ॥ २ ॥ तोहरा हृदय वचन नहि थीर । नलनी पात जइसन वह नीर ॥ ४ ॥ वे कि कहब सखि कहइते अकाज। अथिरक मधय भेल सम काज ॥ ६ ॥ • आसा लागि सहत कत साठ । गरुग्न न हो अमड़ाको काठ ॥ ८ ॥ तोहे नागरि गुन रूपक गेह । अनुदिने बुझल कठिन तुअ नेह ॥१०॥ तन्हिको सतत तोहर परथाव । जनि निरधन मन कतएन धाव ॥१२॥ भनइ विद्यापति इ रस गाव । मगले कानट के नहिं पाव ॥१४॥ (१४) कानट= जीर्ण वस्त्र । दूती । १०२ सुन्दर मन्दिरे थिर न थाक्य वचने न दुय कान । चीर चिकुर एक न सम्बर कत न बुझओब अनि ॥ २ ॥ रामा सबहु तोहर उदेश । विरहे आउल कन्हाइ फिरय देश विदेश ॥ ४ ॥ सपन कारन सयन वरई तुअ परशन लागि । नयन मुदय मदन न देइ हृदय उठय आगि ॥ ६ ॥ -०५