पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/५५

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विद्यापति ।

दूती। | ८७ कत अछ युवति कलामति आने । तोहि मानए जनि दोसरि पराने ॥ २ ॥ तुझ दरशन बिनु तिलाओ न जीवइ । दारुन मदन वेदन कत सहइ ॥ ४ ॥ शुन शुन गुनमति पुनमति रमनी । नकर विलम्ब छोटि मधु रजनी ॥ ६ ॥ सामर अम्बर तनुक रङ्गा । तिमिर मिलओ शशी तुलित तरङ्गा ॥ ८ ॥ सपुन सुधाकर आनन तोरा । पिउतअमिय हसिचान्द चकोरा॥१०॥ दूती । 55 ए धनि कर अवधान । तो विनु उनमत कान । कारण विनु रवने हास । कि कहए गद गद भास ॥ ४ ॥ आकुल अति उतरोल । हा धिक हा धिक बोल ॥ ६ ॥ कॉपए दुरवल देह । धरह न पारइ केह ॥ ८ ॥ विद्यापति कह भाखि । रूप नरायन साखि ॥१०॥