पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/५०७

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विद्यापति । माधव तुअ गुणे धनि बड़ि खीनी । महिखातन भान छिल ता विधु देह दुवरि ता जीनी ॥४॥ राजभिसन दरस कण्ठीरव अछिक दहिन सतावे | लाए तमोर जीवे तवे खाइति जदि न आओव परथावे ॥६॥ काकोदर प्रभु रिपुध्वज किङ्कर विद्यापति कवि भाने । राजा शिवसिंह रूपनराअन लाखमा दोव रमाने ॥८॥ १३ द्विज आहर आहर सुत नन्दन सुत आह्र सुत रामा । वनज वन्धु सुत सुत दए सुन्दरि चलति सङ्केतक ठामा ॥२॥ माधव बुझल कला विशेखी। तुअ गुण लुबुधति पेम पिसल माधव आइलि उपेखीं ॥४॥ हरि अरि पति तो सुअ वाहन जुवति नाम तसु होइ ।। गोपति पति अरि सह मिलु वाहन विरमति कबहु न होई ॥६॥ नागर नाम जोग धनि आव हरि अरि आरपति जाने । नउमि दसाहे एके मितु कामिनि सुकवि विद्यापति भाने ॥८॥ हरि रिपु रिपु प्रभु तनय से घरिन । विबुधासन सम बचन सोहोन कमलासन सम गमनी ॥३।। । । ।