पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/५००

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। विद्यापति। पटेवा भइआ हीत नीत सुन बाल हि । चोलरि एक विनि देहि परम हरि बालहि ।। ४ ।। जो हमे चोलरि बीनही सुन बालहिआ । काह विन झुनी देह परम हरि बालहि ॥ ६ ॥ लहुड़ी देउ रातासना सुन बालहि ।। ननद बिनउनी देञ परम हरि बालहि ॥ ८ ॥ चोलरि पहिरि हमें हाट गन्ने सुन बालहि ।। चोर परीखन लागु परम हरि बालहि ॥१०॥ विद्यापति कवि गाविआ सुन' बालहि । राए शिवसिंह'गुन जान परम हरि बालहि ॥११॥ मोराहि जे अँगना चॅदनर्केर गाछे । सौरभे आव ए भमर पचासे ॥ २ ॥ अरे अरे भमरा न फेरु कवारे । ऑचर सुतल अछ पदुम कुमारे ॥ ४ ॥ सङ्गहि सखिए सुत देहरि भइसूरै । कइसे कए बाहर होएव बाजत नेपरे ॥ ६ ॥ गोडहुक नेपुर भेल जिव काले । नहु नहुपएर दॉ उठ झैझकारे ॥ ८ ॥ माइ वापे दए हलु नेपुर गढाइ । नेपुर भंगवइते जिव अॅकुराइ ॥१०॥ भनइ विद्यापति एहु रस जाने । राए सिवसिंह । लखिमा रमाने ॥१२॥