पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४९२

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विद्यापति । पार भइ परिपन्थि गजिअ भमि मण्डल मुण्डे मण्डिअ | चारु चन्द्र कलेव कीत्ति सुकेत की तुलिको ॥८॥ राम रुपे स्वधरम रखिख दान दप्ये दुधाच खि | सुकवि नव जयदेव भनिओ रे ॥६॥ देवासंह नरेन्द्र नन्दन शत्तु नरवइ कुल निकन्दन सिंह सम सिवसिंह राया सकल गुनक निधान गाणी रे ॥१०॥ सपन देखल हम शिवसिंह भूप । वतिस बरस पर सामर रुप ॥ २ ॥ बहुत देखल गुरुजन प्राचीन । आब भेलहु हम आयु बिहीन ॥ ४ ॥ समटु समटु निअ लोचन नीर । ककरहु काल न राखथि थीर ॥ ६ ॥ विद्यापति सुगतिक प्रस्ताव । त्याग के करुणा रसक स्वभाव ।।८।। १२ दुल्लह तोहरि कत ए छथि माय । कहु न ओ आवथु एखन नहाय ॥ २ ॥ वृथा बुझथु संसार विलास । पल पल नाना तरहक त्रास ॥ ४ ॥ माय बाप जो सदगति पाव । सन्तति को अनुपम सुख आव ॥ ६ ॥ विद्यापति आयु अवसान । कातिक धवल त्रयोदशि जान ॥ ८॥