पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४७९

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विद्यापति । ४४५ एक तौ नॉगट अशोके तो उमत ईशर धथुर खाय । अग्रोके उमति खेडि खेड़ावय किछु न वोलइ जाय ॥८॥ गरुड़वाहन देव नरायण वसहा चढु महेश । भनई विद्यापति कौतुक गायोल सङ्गहि फिरथु देश ॥१०॥ कवि । ४३ तह प्रभु त्रिभुवन नाथे । है हर हम निरदीश अनाये ॥ २ ॥ करम धरम तप हीने । पड़लहुँ पाप अधीने ॥ ४ ॥ वेड़ भासल माझ धारे । भैरव धरु करुअरे ॥ ६ ॥ सागर सम दुख भारे । अवहु करिअ प्रतिकारे ॥ ८ ॥ भनहि विद्यापति भने । सङ्कट करिय तराने ॥१०॥ शिव शङ्कर है। भोलि अनुगति फल भेला । एतए सङ्गीत एति परतर कोन गति । मनोरथ मनहि रहला ॥२॥