पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४७६

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४४३ विद्यापति । बूढहु वएस हर वेसन न छड़ले की फल वसह धवाइ । ' भाग भैल शिव चोट न लगले के जान कि होइ आइ ॥२॥ वसह पड़ाएल के जान कतए गेल हाड माल की भेला ।' फुटि गेल डामरु भसम छिडिएल अपये सँपति दुर गेला ।।४।। हमर हटल शिव तेहहि न मानह अपना हठ वेवहारे । सगरा जगत सवहुकाए सुनिअ घरनिक बोल नहि टारे ॥६॥ भनइ विद्यापति सुनह महेसर इ जानि ऐलाहु तुअ पासे । तोहरा लग शिव विघनि विनासव आनक कोन तरासे ॥८॥ शिव । निते मोजे जानो भिखि नयो मागि । कवनगेल मोरा सडूगहु लागि ॥ २ ॥ झोरि हु लेवाके नहि उसास । इपोसि होएत परतरक आस ॥ ४ ॥ एहे गउरि मोर कोन दोस । वइसले जेम गण कोन भरोस ॥ ६ ॥ गौरी । |.थूल पेट भूमि लडए न पार । शिव देखए ने पारह हमर वार ।। ८ ।। ६ देहे बरु निकाल जाउ । मोरे नामे भिखि मागि खाउ ।।१०।।