पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४४९

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विद्यापति । भनये विद्यापति शेप शमन भय तुया बिनु गति नहि यारा । आदि अनादिक नाय कहासि अव तारण भार तोहारा ।।१०।। ८४० खेत कएल रखवारे लुटले ठाकुर सेवा भोर ।। वाजा कएल लाभ नहि पोले अलप निकट भेल थोर ॥३॥ रामधन धनिजहु वेज अछ लाभ अनेक ॥३॥ भौति भजीठ कनक हमे वनजले पोसल मनमथ चौर ।। जोखि परेखि मनहिं हमे निरसल धन्ध लागल मन भौर ॥५॥ इ ससार हाट कए मानह सर्व वनिक बनजार ।। जे जर बनिजए लाभ तस पावर सुपुरुप भर गमार ||७|| विद्यापति कह सुनह महाजन राम भगति अछ लाभ ।। ८४१ ३ सञीला है कोमल क्वॉच सरीर ॥३}} वएस कतए तेजि गेला । तोह सेवइते जनम वह्ल तइयो न अपन भैलः ।, सैसव देसी चाहि खोअशोला है मधुर माएक छन । दुई सिरीफल छाहें सौअशोला है कोमल दोन झाडे मुह थोथड भए गेल झड़ि गेल । तीन भुअन धइसल देखे जाने केचुमाएल : अखि मुलामलि दूर ने सूझए वन फुटि शैत । अ धराधर धरि निधिय तर उपर - । जनि चुमाएल साप ॥६॥

इन फुटि गेल का । क्षय तर पर उकासी ॥८॥

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