पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४२५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

विद्यापति ।। ४ ०५ मालति पाल रसिक भमरा । भेल वियोग करम दोस मेरा ॥ ८ ॥ निधने पाओल धन अनेक जतने । ऑचर सो खसि पलल रतनै॥ १० ॥ राधा । ७०० सुतलि छलहूँ हम घरवा रे गरवा मीति हार । राति जखनि भिनसरवा रे पिअ आएल हमार ॥२॥ कर कौशल कर कपइत रे हरवा उर टार । कर पङ्कजें उर थपइत रे मुख चन्द निहार ॥४॥ केहनि अभागलि वैरिन रे भागलि मोर निन्द । भल कए नहि देखि पाओल रे गुणमय गोविन्द ॥६॥ विद्यापति कवि गाओल रे धनि मन धरु धीर । समय पाय तरुवर फड़ रे कतवो सिचु नीर ॥८॥ राधा । ८०१ सपन देखल पिय मुख अरविन्द । तेहि खन हे सखि दुटलि निन्द ॥ २ ॥ आज सगुन फल सम्भव सॉच । वैर वेरि वाम नयन मोर नाच ॥ ४ ॥