पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४१२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

३६३ । विद्यापति । । । । । । ।, दूती । । -- : : - । । । । - - ७७७ । । । ।। । - - कि कहव माधव , वेदन कातर । जसु करुना सुनि न कॉदय नागर. ॥ २ ॥ जखन सुनल साख हिमकर नाम। तैखने मुराछ पड़ल सोइ ठाम ॥ ४ ॥ कालि पुनिम शशि कइसे जिउ धरति। चान्द छटा धनि टुटहि पड़ति ।। ६ ।। सजल नलिनि दल सेजविछाओल । सव साख आनि ताहि सुताओल ॥ ८॥ अनुखन चन्दन सीतल नीरे । ते° कि ताप जुड़ात सरीरे ॥१०॥ । • • • • = दती । - - - | " " - । -७७६ - - - - - - अहे कन्हु तुहु गुनवान । हमर वचन कर अवधान ॥ २ ॥ धतुरक फुले जब मधुकर केलि । मालति नाम दैव दुर गेलि ॥ ४ ॥ जहाँ तहाँ जलधर पियव चकोर । सहजहि हिमकर आदर थोर ॥ ६ ॥ काक सवद जब गरुअ सोहाग । दुरे रहु कोकिल . पञ्चम-राग ॥ २ ॥ भनइ विद्यापति सुन बरनारि । सुजनक दुख, दिवस दुइ चारि ॥१०॥ । । - -- - --- ... ७७६ । गमन अवधि तुय न भेल विशेख । भित भरि गेल दिने दिने रेख ॥ २ ॥ ताहि मेटि केहो उ न सुनावे । वदन सिचइ केहो जल लय धावे ॥ ४ ॥ | कि होइति माधव कमलमुखी । जतने जीयाओल सकल सखी ॥ ६ ॥

} }

५ ।।