पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४००

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३८० विद्यापति ।।

Y दूती ।।

  • ७५६ गगन गरज मेघा उठए धरणि थेघा पचशर हिय गेल सालि । से धनि देखलि खिन जिउति आजुक दिन के जान कि होइति काल॥२॥ माधव मन दय शुनह सुवानी । कुजन निरुपि सुजन सखि सङ्गति जे किछु कय सयानी ॥४॥ की हमे सॉझक एकसरि तारा भादव चौठिक चन्दा । ऐसन कए पियाए मोर मुख मानल मो पति जीवन मन्दा ।।६।। वामहु गति जत समदि पठौलनि से सवे कहि कहि गेलि । तेरसि तिथि ससि सामरपख निसि दसमि दसा मेरि भैलि ॥८॥ भनइ विद्यापति सुन वर जौवति मने जनु मानह आने । राजा शिवसिंह रूपनरायन लखिमा पति रस जाने ॥१०॥

दूती । ७५७ कुसुमित कानन हेरि कमलमुखी मुदि रहुय दुनयान ।। कोकिल कलरव मधुकर धनि सुनि कर देइ झपइ कान ॥२॥ माधव सुन सुन वचन हमारी । - तुय गुणे सुन्दरी प्रति भेल दुवरि गुनि गुनि प्रेम तोहारी ॥४॥