पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४०

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विद्यापति । सखी सखी से । आज कन्हाई ऐ वाटे अब बुझए न पारलि बेला । विधिक घटने भेल अकामिक लोचने लोचने मेला ॥ २ ॥ नव कलेवर निज पराभव थम्भ भेल बिनु काजे । दरसन रस रभस लीला लोभे गरासलि लाजे ॥ ४ ॥ सुन्दर रे मन्दिर बाहर भैली । । विजुअ रेह जलधर नाझी पनु कइसे नुकि गेलि ॥ ६ ॥ (२) अकामिक=आकस्मिक। (३) थम्भ=स्तम्भित । (४) दर्शन रस और आनन्द लीला का लाभ लजाकेा प्रास किया, अर्थात् लञ्जा दूर है।" (६) नानी=न्याय । राधा । ५६. साए साए को लागि कौतुक देखल निमिष लोचन अधेि । मौर मनमृग मरम बेधल बिपम चान वेशाधे ॥ २ ॥ गोरस बिरस वासि बिग्रेपल छिकेहु छाड़ल गेहा । मुराल धुनि सुनि मन मोहल विकेहु भेल सन्देहा ॥ ४ ॥ तीर तरङ्गिनि कदम्ब कानन निकट जमुना घाटे । उलटि हेरइत उलटि परल चरण चीरल कोटे ॥ ६ ॥ सुकृति सुफल सुनह सुन्दार विद्यापति वचन सारे । कंसदलन नरायन सुन्दर मिलल नन्दकुमारे ॥ ८ ॥ (३-४) दुग्ध विरस और घासी (यात्रा का अमले लक्षण )। छिटु=शुन कर। विके मेल सन्देहा=दुग्ध घेचना कठिन हुआ ।