पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३९२

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। विद्यापति । हिमकर हेरि अवनत कर आनन कर करुणापथ, हेरी ।। । 'नयन काजर लए लिखए विधुन्तुद भए रह ताहेरि सेरी ॥४॥ दखिण पवन वह से कइसे जुवति सह कर कवलित तसे अन । गेल पराण आश दए राखए दश नखे लिखए भुअङ्गे ॥६॥ मीनकेतन भए शिव शिव कए धरनि लोटावए गेहा । । । । । करे रे कमल लए कुच सिरिफल दए शिव पूजए निज देहा ॥८॥ परभृत के डरे पास लए करे वीएस निकट पुकारे । राजा शिवसिंह रूपनरायन करथु विरह उपचारे ॥१०॥ दूती । ७४६ माधव देखील वियोगिनि वामे । । अधर न हास विलास सखि मङ्ग अहोनिश जप तुय नामे ॥२॥ आनन शरद सुधीकर सम तसु बोलइ मधुर धुनि वानी । कोमल अरुन कमल कुम्भिलायल देखि मन अइलहु जानि ॥४॥ हृदयक हार भार भेल सुवदनि नयन न होय निरोधे । सखी सब आय खेलाल रङ्ग करि तसे मन किछुओ न वोधे ॥६॥ रगड़ल चानन मृगमद कुङ्कुम सभ तेजलि तुय लागि । जनि, जलहीन मीन :जक फिरइछ अहोनिश रहइछ, जागि ॥८॥