पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३८४

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विद्यापति ।। हम छल ने टुटव नेहा । सुपुरुख वचन पपाणक रेहा ॥ ६ ॥ भनइ विद्यापति सीइ । न कर विषाद मने मिलव मधाइ ॥ ८॥ । राधा । कत दिन रव कपल कर लाय । रविक अछइत कमलनि कुम्भिलाय ॥ २ ॥ कब निअ उगुति जुगुति परचार। आव नइ जिउति धनि तोहरि पियारि ॥ ४ ॥ अभरण भूखन हलु छिड़िआय । कमक लता सन फुल झड़ि जाय ॥ ६ ॥ वसन उघारि हेरल भरि दीठि । गरि नड़ाओल कुसुमक सीठि ॥८॥ भनइ विद्यापति सुन वजनारि । धैरज धय रह मिलत मुरारि ॥१०॥ राधा । सजनि के कह आओव मधाइ । विरह पयोधि पार किये पाओव भभु मने नहि पतियाइ ॥२॥ एखन तखन कर दिवस गमाओल दिवस दिवस करि मासा । मास मास करि बरस गमाओल छोडले जीवनक आशी ॥४॥ बरस बरस करि समय गमाओल खोयतुं तनुक आसे । हिमकर किरण नलिनि यदि जारव कि करव माधवी मासे ॥६॥