पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३८१

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विद्यापति । ७२५ फिरि फिरि भमरा उनमत बुल । कानन कानन केसु फुल ॥ २ ॥ मोहि भान लागल कह काहि । रितुपति वेकतायल असकसाहि ॥ ४ ॥ चन्दा उगि चण्डाल भेल । हिजराज धरमता विसरि गेल ।। ६ ॥ भनइ विद्यापति बुझ रसमन्त । राघव सिंह सोनमति देवि कन्ते ॥ ८ ॥ राधा । ७२६ सरोवर भजि समीरन विथरओ केवल कमल परागे । माधविका मधु पिबहि न पारए कोकिल दे उपरागे ।।२।। साजन साजन साजन साजन सुनहि साजनि मोरी । वालम्भु सै मझु दीठि मिलावहि होइहै। दासी तोरी ॥४॥ पाडरि परिमल असा पूरय मधुकर गोवय गीते ।। चॅॉदिनि रजनी रभस बढावए मपति सवे विपरीते ॥६}} हृदयक वाउलि कहिय पर जनु तेही कही सयानी । विनु माधव रे मधु रजनी जाइति भन कि जिव विनु पानी ॥८॥ विद्यापति कविवर एडु गावय होउ उपदेशो रसमन्ता । अरजुन राए चरण पए सेवहि गुना देवि रानि कन्ता ।।१०।।