पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३६८

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३५४ विद्यापति ।। राधा । ७०८ प्रथम वयस हम कि कहब सजनि पहु तेजि गेलाह विदेश । कत हम धैरज बॉधव सजनि तनि विनु सहव कलेश ॥३॥ आओन अवधि वितीत भैल सजनि जलधर छपल दिनेश । शिशिर वसन्त उषम भेल सजनि पाओस लेल परवेश ।।४।। चहुदिश झिङ्गुर झनकरु सजनि पिक सुन्दर करु गान । मनासिज मारु मरम शर सजनि कतेक सुनव हम कान ॥६॥ शेज कुसुम नहि भावय सजनि, विष सम चानने चीर । जइओ समीर शीतल बहु सजनि मन वच उड़ल शरीर ॥८॥ भनहि विद्यापति गाओल सजनि मन धनि करिये हुलास । सुदिन हेरि पहु आओत सजनि मन जनि करिय इदास ॥१०॥ राधा । । ७०६ । परिजन कर लए देहरि मुह दए रोअए पथ निहरि । केो न कहए पुर परिहरि माधुर कओन दिन आओत मुरारि ॥२॥ कहि दए समदव के समझाएत कठिन हृदय पिअ तोरा ॥३॥