पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३६७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

३५५ विद्यापति । पिआ बिसरल नेह अवसन भेल देह कत कत सहव संताप । "कालि कालि भए मदन आगु कए आओत पाउस ताप ॥५॥ राधा । ७१० वरिसए लागल गरजि पयोधर धरणी दन्तुदि भैली । नवि नागरि रत परदेस बालभु आओत आसा गेली ॥२॥ साजन आवे हमें मदन अधारे । सुन मन्दिर पाउस के जामिनि कामिनि की परकारे ॥४॥ लघु गुरु भए सवि पए भरे बाढलि नीचेओ भउ आगाधे । कोने पर पथिके अपने घर आओव सहजहि सब का बाधे ।।६।। एहे वेज कइए पि गेला आओवं समय समाजे ।। मोहि वरु अतनु अतनु कए छाडथु से सुखे भुजथु राजे ॥८॥ तुअ गुन सुमरि कान्हे पुनु आव विद्यापति कवि भाने । राजा सिवासंह रूपनरायन लाखमा देवि रमाने ॥१०॥ " " राधा । ७११ दरसन लागि पुजय निते काम । अनुखन जपए तोहरि पए नाम ॥ २ ॥ अवधि समापन मास अखाढ़ । अवे दिने दिने हे जीवन भेल गाढ़॥ ४ ॥