पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३६५

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विद्यापति । अपनहि कमल फुलायल । ताहि फुल भमर लोभायल ॥ ६ ॥ विद्यापति कवि गाओल । उचित पुरविल फल पाओल ॥ ८॥ सखी । ६६२ नमित अलके वेढली मुखकमल शोभे । राहु कि बाहु पसारला शशिमण्डल लोभे ॥२॥ मदन शरे मुरछली चित चेतन वाला । देखालि से धनि हे वासि निमालिनी माला ॥४॥ कलस कुज लोटाइली धनसामीर वेनी । कनय परय सुतली जनि कारि नगिनी ॥६॥ भनइ विद्यापति भाविनि थिर थाक न मने । राजा रूपनरायण लखिमा देइ रमने ॥८॥ सखी ६६ ३ पिय विरहिनि अति मालनि विलासिनि कोने पर जीउति रे । अवधि न उपगत माधव आवे विष पिउति रे ॥२॥ आतपचर विधु रविकर चरन कि परशह भीमारे । दिन दिन अवसन देह सिनेहक सीमारे ॥४॥