पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३४९

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विद्यापति । राधा । ६५३ सरसिज विनु सर सर विनु सरसिज की सरसिज विनु सूरे । जौवन विनु तन तनु विनु जौवन की जौवन पिय दूरे ॥२॥ सखि हे मोर बड़ दैव विरोधी । मदन वेदन बड़ पिया मोर बोल छड़ अवहुँ देहे परबोधी ॥४॥ चौदिश भमर भम कुसुमे कुसुमे रम | नीरसि माजरि पिबई । मन्द पवन वह् । पिक कुहु कुहु कह सुनि विरहिनी कइसे जीवइ ॥६॥ सिनेह अछल जत हम भेल न टुटत बड़ चोल जत सवेइ धीरे । अइसन कए वोल देहु निश्च सीम तेजि कहु ऊछलु पयोनिधि नीरे ॥८॥ भनइ विद्यापति | अरेरे कमलमुखि गुनगाहक पिय तोरा ।। राजा शिवसिहँ रूपनरायन सहजे एको नहिं भारी ॥