पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३२७

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विद्यापति ।। देखि देखि माधव सने उलसन्त । विरिदावन भेल वेकत वसन्त ॥६॥ कोकिल बौलए साहर भार । मदने पाओल जग नव अधिकार ॥८॥ पाइक मधुकर कर मधु पान (भम भमि जोहए मानिनि जन मान ॥१०॥ दिसि दिसि से भमि विपिन निहारि। रास बुझाय मुदित मुरारि ॥१२॥ भनइ विद्यापति है रस गाव | राधा माधव अभिनव भाव ॥१४॥ सखी । ६१० लता तरुअर भण्डप जीति । निरमल शशधर धवलिय भीति ॥ २ ॥ पॅउसे नाल अइपन भल भेल । रात परीहन पल्लव देल ॥ ४ ॥ देखह माइहे मनचित लाय । वसन्त विवाह कानने थलि अयि ॥ ६ ॥ मधुकर रमणी मङ्गल गाव । दुजवर कोकिल मन्त्र पढाव ॥ ८ ॥ करु मकरन्द थोदक नीर । विधु वरियाती धीर समीर ॥१०॥ कृनय केसुया मुति तोरण तूल । लावा विथरत वेलिक फुल ॥१२॥ केशु कुसुम करु सदुर दान । जउतुक पायोल मानिनि भान ।।१४।। खेलए कउतुक भव पचवान् । विद्यापति कवि दृढ़ कय भान ॥१६॥ अभिनव नागर बुझय वसन्त । अति महेश रेनुक देवि कृन्त ॥१८॥ कवि वाजतु दिगि दिगि धौदिम दिमिया । भटति फैलावती श्याम सड़े भाति करे कृरु ताल प्रवन्धक धनिया ॥२॥